Hindi Quote in Poem by Vijay Sharma Erry

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कविता: ;इश्क़ के दो रंग
✍️ – विजय शर्मा एरी


पहला दौर – साठ के दशक का प्यार
वो चिट्ठियों में लिखा गया इश्क़ था,
हर अक्षर में बसी एक दस्तान थी।
बिना कहे सब कुछ कह जाना,
वो निगाहों की भी अपनी ज़ुबान थी।
साइकिल की सवारी, छत की मुलाक़ात,
इज़हार में भी एक पाकीज़गी की पहचान थी।


साधारण से तोहफ़े में भावनाएँ ढेरों,
गुलाब की पंखुड़ी में भी ख़ुशियाँ मिलती थीं।
वो चूड़ी की खनक, वो झील सी आँखें,
हर मुलाक़ात में दुआएं मिलती थीं।
माता-पिता की इज़्ज़त भी थी ज़रूरी,
इश्क़ में लाज, शर्म और मर्यादा खिलती थीं।


अब का दौर – 2025 का प्यार
अब तो प्यार मोबाइल की स्क्रीन में है,
कॉल, चैट, वीडियो में दिन-रात गुजरते हैं।
इमोजी बन गए हैं जज़्बातों के राही,
"Seen" पे भी अब लोग बिखरते हैं।
डेटिंग ऐप्स पे रिश्ते बनते-बिगड़ते,
कमी हो गई है उन नज़र की बातों की।


तेज़ी से बदलती है दिल की दुनिया,
पल में प्यार और पल में अलविदा।
फिल्टर लगे चेहरों में खो गया एहसास,
अब रिश्तों में ना वो गहराई ना सदा।
सच्चाई से ज़्यादा दिखावा है हावी,
और भरोसे की जगह शक है सजा।


प्यार तब इबादत था, अब तिजारत सा लगता है,
दिल की बजाय दिमाग से नापा जाता है।
साठ के इश्क़ में सुकून की बारिश होती थी,
अब तो कॉन्टेंट, स्टोरी और स्टेटस आता है।
एक वक़्त था जब प्यार ताजमहल बनवाता था,
अब रिश्ता सोशल मीडिया पे बनता और मिट जाता है।


फिर भी दिल में एक उम्मीद पलती है,
कि शायद कोई फिर से वैसा प्यार कर जाएगा।
जहाँ चुप्पी भी बातें करे, और इंतज़ार सच्चा हो,
जहाँ इश्क़ फिर इबादत बनकर लौट आएगा।

Hindi Poem by Vijay Sharma Erry : 111991201
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