मैं इस संसृति का हिस्सा हूँ
तुम संसृति का हिस्सा हो,
खो जाऊँ तो मिल जाऊँगा
तुम सा अगाध बन जाऊँगा।
हम संसार की बातों में
सुबह-शाम बीताते जायेंगे,
अर्धसत्य से पूर्ण सत्य तक
उर्ध्व राह ढूंढते जायेंगे।
जो संगीत यहाँ बजता है
उसमें गीत मिलाते जायेंगे,
हम पशुता को छोड़छाड़
मानवता का संघर्ष सजायेंगे।
जो भाषा की लाठी पकड़-पकड़
भारत को यों नकार रहे हैं,
हम भारत की भाषा को कह
सबकी पहिचान बना रहे हैं।
क्षुद्र जिनका लक्ष्य रहा
वे मिट जायेंगे मिट्टी में,
पार्थ, इस संघर्ष की मीमांसा में
शिशुपाल चक्र से कट जायेंगे।
** महेश रौतेला