जीवन के मौसम
✍️ कवि विजय शर्मा एरी
जीवन भी मौसम सा रंग बदलता जाता है,
हर मोड़ पे एक नया अनुभव सिखाता है।
बचपन वसंत की तरह महकता और खिलता,
निर्दोष हँसी में हर ग़म को बहा ले जाता है।
जवानी की ऋतु है गर्मी सी तपती,
सपनों की आँधियों में हर राह उलझती।
कभी प्यार की ठंडी छाँव मिलती है राहों में,
तो कभी धोखों की लू हर उम्मीद को झुलसाती।
प्रौढ़ावस्था आती है शरद की शांति लेकर,
जीवन के फलसफे धीरे-धीरे समझ में आते।
मन थोड़ा थमता है, सोच गहरी होती है,
मगर भीतर कहीं छुपा सा बचपन फिर भी मुस्काता।
बुढ़ापा है जाड़े की ठंडी शामों जैसा,
सन्नाटे में डूबी हुई यादों की गठरी थामे।
शरीर थकता है, मन तन्हा हो जाता है,
पर अपनों की एक मुस्कान फिर से जीवन दे जाती है।
फिर एक दिन जीवन की ऋतुएँ थम जाती हैं,
मौसम की तरह हम भी खामोश हो जाते हैं।
मगर यादों की खुशबू हमेशा हवा में तैरती है,
क्योंकि जीवन के मौसम अमर गीत बन जाते हैं।
अगर किसी को मेरी कविता से सहमति न हो तो कृपया अपने विचार कमेंट करें। धन्यवाद।