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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(31)

सरसी छंद - कर सपने साकार
**********
संग हौसले कदम बढ़ाओ, होगी कैसे हार।
डरते क्यों हो बढ़ना आगे, कर सपने साकार।।

लोगों का है काम डराना, क्या है इसमें खास।
टूटे सब आधार तुम्हारा, उनकी इतनी आस।
नयन मूँद आगे बढ़ जाओ, कर सबका आभार।
डरते क्यों हो बढ़ना आगे, कर सपने साकार।।

शुभ चिंतक हैं सभी मान लो, बड़े हर्ष के साथ।
ईश चरण में सदा झुकाए, रखिए अपना माथ।
जो है मन की सोच तुम्हारे, देकर तुम आधार।
डरते क्यों हो बढ़ना आगे, कर सपने साकार।।

बिना हार कब जीत मिली है, हमें बताओ आप।
फिर क्यों अपने सिर लेते हो, यार हार का पाप।
कुछ करने की बड़ी जरूरत, यही समय दरकार।
डरते क्यों हो बढ़ना आगे, कर सपने साकार।।

दुनिया यूँ ही नहीं झुकाती, कभी किसी को शीश।
जिस दिन तुमको जीत मिलेगी, हो जाओगे बीस।
बड़े धैर्य से आगे बढ़ना, निकले दुश्मन खीस।
डरते क्यों हो बढ़ना आगे, कर सपने साकार।।

खुद पर करके आप भरोसा, जिद लेना तुम ठान।
करने दुनिया तभी लगेगी, तेरा भी गुणगान।
सधे कदम जब होंगे तेरे, डर जाएगी हार।
डरते क्यों हो बढ़ना आगे, कर सपने साकार।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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दोहा गीत
...............
सबकी अपनी सोच है, जाने कैसी रीति।
आज किसी को आप से, नहीं रही अब प्रीति।।

जीवन में मुश्किल हुए, मन मानव संबंध।
रिश्ते ऐसे लग रहे, जीवन में अनुबंध।।
सुनने को मिलते नहीं, अब प्यानरा संगीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

मानव पत्थर हो गया, कलयुग का है दौर।
सूख रहे हैं आम के, बिना फलों के बौर।।
सभी शिकायत कर रहे, जाने कैसी नीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

ईश्वर जाने क्यों भला, रंग हुए बदरंग।
ममता का भी आजकल, हुआ मोह है भंग।।
नियत साफ़ रखें सभी, भारी पड़े अनीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

सुधीर श्रीवास्तव यमराज मित्र)

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दोहा गीत
...............
सबकी अपनी सोच है, जाने कैसी रीति।
आज किसी को आप से, नहीं रही अब प्रीति।।

जीवन में मुश्किल हुए, मन मानव संबंध।
रिश्ते ऐसे लग रहे, जीवन में अनुबंध।।
सुनने को मिलते नहीं, अब प्यानरा संगीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

मानव पत्थर हो गया, कलयुग का है दौर।
सूख रहे हैं आम के, बिना फलों के बौर।।
सभी शिकायत कर रहे, जाने कैसी नीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

ईश्वर जाने क्यों भला, रंग हुए बदरंग।
ममता का भी आजकल, हुआ मोह है भंग।।
नियत साफ़ रखें सभी, भारी पड़े अनीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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दोहा गीत
...............
सबकी अपनी सोच है, जाने कैसी रीति।
आज किसी को आप से, नहीं रही अब प्रीति।।

जीवन में मुश्किल हुए, मन मानव संबंध।
रिश्ते ऐसे लग रहे, जीवन में अनुबंध।।
सुनने को मिलते नहीं, अब प्यानरा संगीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

मानव पत्थर हो गया, कलयुग का है दौर।
सूख रहे हैं आम के, बिना फलों के बौर।।
सभी शिकायत कर रहे, जाने कैसी नीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

ईश्वर जाने क्यों भला, रंग हुए बदरंग।
ममता का भी आजकल, हुआ मोह है भंग।।
नियत साफ़ रखें सभी, भारी पड़े अनीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।

सुधीर श्रीवास्तव यमराज मित्र)

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जन्मदिन विशेष (01 जुलाई)
जन्म दिन की सार्थकता
**********
आज मेरा जन्मदिन है
यह बात मेरे मित्र यमराज ने बताया,
सोशल मीडिया से वह भी जान पाया,
एक राज की बात बताकर चिढ़ाया
आपको प्राइमरी पाठशाला के मुँशी जी ने भरमाया
और विद्यालयी दस्तावेज में
अठारह मार्च उन्नीस सौअड़सठ के स्थान पर
एक जुलाई उन्नीस सौ उनहत्तर को
स्व इच्छा से आपका जन्म दिन चढ़ाया,
वो समय कुछ और था
इसलिए बाबा ताऊ ने भी सवाल नहीं उठाया।
तब से आप झूठा जन्मदिन मना रहे हो
इसमें कौन सा बड़ा काम कर रहे हो
शरम नहीं आती जो हमें भी बेवकूफ बना रहे हो।
पर हम बेवकूफ नहीं बनेंगे प्रभु
अपने यमलोकी कैलेंडर में
समयानुसार ही समय का लेखा जोखा टकरेंगे,
अपनी तैयारियों को थोड़ा और तेज करेंगे।
आप जन्मदिन मनाओ, केक काटों,
हँसो नाचो गाओ, ठुमके लगाओ
पर ये याद रखना कि जीवन का एक और वर्ष
आपके हाथों फिसल गया,
अच्छा था या बुरा, उसे तो जाना ही था
तो वो चुपचाप निकल गया,
आगे की जिम्मेदारी अपने भाई को सौंप गया।
आप हमारे मित्र ही नहीं शुभचिंतक भी हो
तो मैं भी आपका मित्र -शुभचिंतक हीहूँ,
इसलिए आपको मुफ्त की सलाह दे रहा हूँ
जिसे आप प्यार से स्वीकार करो
जन्मदिन को यादगार बनाओ,
समाज, राष्ट्र के लिए कुछ नेक काम करो
माना कि आप अंबानी अडानी नहीं हो, तो क्या हुआ?
जो कर सकते हो, कम से कम वो तो करो
बहाने मत बनाओ, एक जिम्मेदार नागरिक बनो
शेष जीवन में ऐसा कुछ कर जाओ
कि लोग आपको याद रखें,
आप कहते हो न कि मरना नहीं जिंदा रहना चाहते हो
कि लोग आपके जाने के बाद भी
आपकोअपने दिलों में जिंदा रखें।
कितने लोग हैं जो मरकर भी भला जिंदा हैं
उसमें आपका भी नाम जुड़ जाए,
कम से कम एक दो काम ऐसा तो करो।
मरने जीने की चिंता में समय व्यर्थ मत करो,
अभी तो बहुत समय है, इस फेर में न रहो,
जन्मदिन पर बड़ों का आशीर्वाद, छोटों का स्नेह लो
औपचारिकता निभाने के लिए बस इतना ही काफी है,
सबके साथ मेरी भी बधाइयाँ शुभकामनाएँ
बड़ी शराफत से स्वीकार करो,
चाहो तो थोड़ा सा आशीर्वाद हमसे भी माँ लो।
स्वस्थ रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो,
उपहार की चाह हो तो वो भी बक दो
फिलहाल मेरे हिस्से का केक मुझको खिला दो,
लुत्फ़ बाद फिर जन्मदिन का उठाओ।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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आधार छंद-सरसी - गीत
सद्गुरु कृपा अनंत।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अंधकार में भी उजियारा, सद्गुरु कृपा अनंत।
हम कहते गुरुदेव हमारे, ईश्वर सम भगवंत।।

जिन पर कृपा रहे सद्गुरु की, बड़भागी वो दास।
जिसकी जैसी होती निष्ठा, और संग विश्वास।।
चाहे जितना मूर्ख हो, बन जाता वो संत।
हम कहते गुरुदेव हमारे, ईश्वर सम भगवंत।।

हरते सारे कष्ट हमारे, देते सद्गुरु ज्ञान।
समझ नहीं सकता हर कोई, पढ़ा लिखा विद्वान।।
जीवन की हर भव बाधा का, कर देते हैं अंत।
हम कहते गुरुदेव हमारे, ईश्वर सम भगवंत।।

अपना बच्चा हमको मानें, देते प्यार दुलार।
ठोक-पीटकर हमें संवारे, जैसे सदृश लुहार।।
मान और मर्यादा से भी, ऊपर उनके दंत।
हम कहते गुरुदेव हमारे, ईश्वर सम भगवंत।।

महक उठे जीवन की बगिया, हरियाली हर ओर।
कृपा पात्र जो हो जाता है, उसका नूतन भोर।
इठलाता वो ऐसे जैसे, वही बड़ा बलवंत।
हम कहते गुरुदेव हमारे, ईश्वर सम भगवंत।।

रखते हैं वो ध्यान हमारा, रहें दूर या पास।
छोड़ दिया सब उनके ऊपर, जो करके विश्वास।
उसका जीवन बन जाता है, भाव भक्तिमय संत।
हम कहते गुरुदेव हमारे, ईश्वर सम भगवंत।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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सरसी छंद गीत - पाया आशीर्वाद (१६,११)
*****
ये तो है सौभाग्य हमारा, पाया आशीर्वाद।
ईश्वर की ये बड़ी कृपा है, बिना किसी फरियाद।।

मात पिता की मिलती छाया, जैसे शीतल छाँव।
हमको तो ऐसा लगता है, सुंदर जीवन गाँव।।
और नहीं कुछ चाह हमारी, बस हमको है याद।
ईश्वर की ये बड़ी कृपा है, बिना किसी फरियाद।।

मंदिर - मस्जिद गुरुद्वारा सा, होता है आभास।
मात-पिता के रज चरणों में, लगती दुनिया पास।।
जिनसे हमको मिले सदा ही, खुशियों का आमाद।
ये तो है सौभाग्य हमारा, पाया आशीर्वाद।।

बस इतनी सी चाहत मेरी, बनी रहे यह छाँव।
और धरा पर सदा हमारे, टिके रहें ये पाँव।।
जन मन से मैं केवल चाहूँ, रखूँ आस ना दाद।
ये तो है सौभाग्य हमारा, पाया आशीर्वाद।।

मात-पिता की यदि छाया हो, सिर पर उनका हाथ।
इससे अच्छा भला किसी को, मिलती खुशियां साथ।।
आप सभी भी हमको दे दो, ऐसा अतुल प्रसाद।
ये तो है सौभाग्य हमारा, पाया आशीर्वाद।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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सरसी छंद - परिमल प्रेम विधान
********
आओ जीवन में फैलाएँ, परिमल प्रेम विधान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

सुंदर शीतल सभी बहाएँ, प्रेम प्यार रसधार।
सब के मन को अति हर्षाए, सुरभित मंद बयार।।
मिलकर आओ आज चलाएँ, हम ऐसा अभियान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

जीवन दर्शन ऐसा सबका, मिलकर करें प्रयास।
हर प्राणी की सतत साधना, एक सूत्रीय खास।।
सबके जीवन में खुशियाँ हों, सबका हो उत्थान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

परिमल प्रेम विधान सीखना, आज समय की चाह।
सबके हित की खातिर खोजो, सारे मिलकर राह।।
परमारथ का भाव हमारे, नित्य चढ़े परवान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

राग द्वेष से दूर हमारा, हो जीवन का सार।
भाईचारा हर प्राणी में, सबको सबसे प्यार।।
सबका जीवन सुंदर होगा, तभी बढ़ेगा मान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र

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सरसी छंद - परिमल प्रेम विधान
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आओ जीवन में फैलाएँ, परिमल प्रेम विधान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

सुंदर शीतल सभी बहाएँ, प्रेम प्यार रसधार।
सब के मन को अति हर्षाए, सुरभित मंद बयार।।
मिलकर आओ आज चलाएँ, हम ऐसा अभियान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

जीवन दर्शन ऐसा सबका, मिलकर करें प्रयास।
हर प्राणी की सतत साधना, एक सूत्रीय खास।।
सबके जीवन में खुशियाँ हों, सबका हो उत्थान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

परिमल प्रेम विधान सीखना, आज समय की चाह।
सबके हित की खातिर खोजो, सारे मिलकर राह।।
परमारथ का भाव हमारे, नित्य चढ़े परवान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

राग द्वेष से दूर हमारा, हो जीवन का सार।
भाईचारा हर प्राणी में, सबको सबसे प्यार।।
सबका जीवन सुंदर होगा, तभी बढ़ेगा मान।
खुशहाली की नव आभा में, मानवता का ज्ञान।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र

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सरसी/कबीर छंद -सदा रहो गतिमान

इंतज़ार में नहीं ठिठकना, सदा रहो गतिमान।
हर मुश्किल से लड़कर चलना, गाते रहना गान।।

हिम्मत और हौसला रखना, पाओगे आयाम।
बुजदिल बन किसका हुआ, सफल आज तक काम।।
रखना है यदि तुमको अपना, हरदम ऊँचा मान।
इंतज़ार में नहीं ठिठकना, सदा रहो गतिमान।।

सफल आज है होना तुमको, तो समझो विज्ञान।
जीने से क्या जिंदा रहना, मिला मुफ्त का दान।।
संघर्षों से मत घबराना, इतना रखना ध्यान।
इंतज़ार में नहीं ठिठकना, सदा रहो गतिमान।।

लिखना है इतिहास मान लो, जीवन सूत्री मान।
अंधकार के चक्रव्यूह में, नहीं उलझना जान।।
नाम तुम्हारा कल में चमके, इसका हो जब ज्ञान।
इंतज़ार में नहीं ठिठकना, सदा रहो गतिमान।।

बनना तुम्हें नज़ीर अलग सा, चमके जग की आँख।
एक नाम बस जेहन सबके, अपने दिल में राख।।
बस इतना ही याद रख सके, मंजिल बने महान।
इंतज़ार में नहीं ठिठकना, सदा रहो गतिमान।।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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