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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(24)

भारत रत्न धोंडो केशव कर्वे

अठारह अप्रैल अठारह सौ अट्ठावन को
महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के शेरावली में
निम्न मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे।
पिता केशवपंत -माता लक्ष्मीबाई की संतान
भारतीय समाज सुधारक-शिक्षक धोंडो केशव कर्वे
जिन्हें महिला शिक्षा और विधवा विवाह के
समर्थन के लिए जाना जाता है।
भारत का पहला महिला विश्वविद्यालय की
स्थापना का गौरव जिनके नाम है।
पहले जीवित व्यक्ति के रूप में
भारतीय डाक विभाग ने जिन्हें सम्मानित किया गया,
मुंबई विश्वविद्यालय से गणित में स्नातकधारी
फर्ग्यूसन कॉलेज में गणित शिक्षण कार्य किया।
भारत सरकार ने धोंडो केशव कर्वे को
उन्नीस सौ अट्ठावन में भारत रत्न सम्मान दिया,
ऐसे समाज सुधारक को शत शत नमन वंदन है,
महिलाओं की शिक्षा और विधवा विवाह के लिए
धोंडो केशव कर्वे जी के कार्यों का अभिनंदन है,
ऐसे रत्न का नाम सदा अमर रहेगा,
देश ऐसे व्यक्तित्व पर सदा ही नाज करेगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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रोला छंद - कहें सुधीर कविराय
*********
कैसे हो विश्वास, समय अब बदल गया है ।
लगता जैसे आज, यहाँ कुछ लुप्त हुआ है।।

उनका मेरे शीश पर, एक आवरण भारी था।
कहते थे तब लोग, बड़ सौभाग्य धारी था।।

ईश पर हो विश्वास, उसी का समय रहेगा।
जैसी होगी चाह, वही सब नहीं चलेगा।।

गुरु पर हो विश्वास, ज्ञान भी तब मिलता।
जो हैं इससे दूर, भला कितना फलता है।।

कौन पधारा द्वार, ध्यान इसका भी रखिए।
अपने कुंठित भाव, छोड़कर स्वागत करिए।।
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करे कौन है फिक्र, चीख सुन आज किसी का।
टीस बढ़ी है आज, दर्द सारी दुनिया का।।

रूप निराला राम, आप हम देख रहे हैं।
मंत्र मुग्ध हैं लोग, धार ज्यों गंग बहे है।।

घर-घर बहे बयार , बहन पीहर आई है।
भाई बहन का प्यार , खूब मस्ती छाई है।।

राखी बांधी हाथ, साथ में माथे टीका ।
मीठा लाई साथ , भाग्य का टूटा छींका।

देख अमीरी लोग, भावना हुई घमंडित।
हैं कितने अज्ञान, हुए जो हैं पाखंडित।।

चाहे जितना यार, आप मानें हम पापी।।
हो जाता उद्धार, राम की किरपा व्यापी।।

समय चक्र का खेल, सफल या असफल सपना।।
कौन पास या फेल, भाग्य है अपना ‌अपना।।

करता वो अपमान, दोष ‌है‌ ये आदत का।।
उस पर भूत सवार, नशा अपनी दौलत का।।

आखिर अपनी हार , भला हम क्योंकर मानें।
खोना क्या उपहार , नहीं हम वह पथ जानें ।।

करता है अपमान , नित्य परिवेश भुलाकर ।
उस पर भूत सवार , रंग पश्चिम का आकर ।।

बहन पधारे द्वार , नित्य पथ भ्रात निहारे।
बाँधे रक्षा सूत्र , हाथ सिर पर मम धारे ।।

किसको कहें गरीब , जब सब यहां गरीब हैं ।
दुनिया लगती पोल, सभी बजाते ढोल हैं।।

किसको कहें गरीब , यहां पर सब निर्धन हैं ।
दुनिया लगती पोल , ढोल में नकलीपन है ।।

तुम हो क्यों बेचैन, रीति आना जाना है।
अब हो जाओ मौन, प्रीति व्याकुल माना है।।

करो आप स्वीकार,नमन मेरा स्वीकारो।
हो मेरा उद्धार, शरण आया हूँ तारो।।

आज ज़हर का बीज, नहीं तुम इतना घोलो!
बांटो मीठी चीज, शब्द दो प्यारे बोलो।।

राम नाम ही आस, राम की जपिए माला।
करुं सदा विश्वास, टूटते हैं हर जाला।।

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सुधीर श्रीवास्तव

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सरसी /सोरठा छंद
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कैसे पूजा हो माँ तेरी, या कि करूँ मैं पाठ।
जाने कैसी बुद्धि हमारी, उम्र हो रही साठ।
माँ इतना वरदान मुझे दो, हो मेरा उद्धार।
हाथ शीष पर रख दो मेरे, समझूँ जीवन सार।।

उलट-पुलट सब करते जाना, यही समय की नीति।
सत्य बात को किसने माना, दुनिया की है रीति।
जन- मानस कब तक जागेगा, पता नहीं है यार।
खेल रहे सब बड़े मजे से, बस दो दूनी चार।।

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सोरठा छंद- कहें सुधीर कविराय
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ईश
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हो जाये उद्धार, ईश कृपा हम पर करें।
चलता रहे व्यापार, जैसी मर्जी आपकी।।

हाथ हमारे शीश, मुझे पता है ईश जी।
आज बना वागीश, महिमा सारी आपकी।।

है अटूट विश्वास, होता ईश्वर पर जिन्हें।
नहीं बिखरती आस, ऐसे लोगों की कभी।।
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विविध
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आप सभी हम आज, कविता पढ़ने आ गये।
पूरण हों सब काज, कृपा राम जी की मिले,

कविगण आये आज, प्रभु राम दरबार में।
अपने सुर अरु साज, अपने सुर अरु साज।।

मत करिए अभिमान, नियमों का पालन करें।
कितना किसको ज्ञान, वरना दुनिया जानती।।

करता रहता वास, धोखा जिनके चित्त में।
करते हैं उपहास, उसका कितने लोग नित।।

पायें निज का मान, लोभ मोह से दूर रह।
सबसे सुंदर ज्ञान, यही बड़ा है धर्म का।।

जाने सकल जहान, सद्गुरु की महिमा बड़ी।
जो लेते संज्ञान, फिर भी कुछ ही लोग हैं।।

रखते सबका आप, लेखा जोखा कर्म का।
पाप, पुण्य संताप, छूट नहीं देते कभी।।
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सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य
मोदी जी ग़लत बात है
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अभी-अभी यमराज ने मोदी जी को फोन लगाया
आपरेशन सिंदूर के लिए हर्ष जताया,
अचानक वो हत्थे है उखड़ गया
मोदी जी को भला-बुरा कहने लगा।
मोदी जी ने उससे प्यार से पूछा -
यमराज महोदय! आखिर आपको गुस्सा क्यों आया?
यमराज कहने लगा- गुस्सा करने वाला काम करेंगे जानबूझ कर हमें गुस्सा भी दिलायेंगे
और फिर पूछेंगे कि हमें गुस्सा क्यों आया?
तो सुनिए! आपकी सेना ने आपरेशन सिंदूर किया
सबके साथ हमने भी अच्छा मान लिया,
आपके लिए हमारे दिल में जो सम्मान था
वो आज अचानक ही और भी बढ़ गया।
पर हमारे चेलों को आपके सैनिकों का
असंवेदनशील व्यवहार हमारे चेलों को बहुत खल गया,
उन्होंने कब,कहाँ, किसको, कैसे मारा,
किसी ने नहीं, तो हमने भी नहीं पूछा
पर अपने चेलों का ये सवाल मुझे भी चुभ गया।
अजहर मसूद के परिवार को मार दिया
कोई दस तो कोई चौदह कहता है,
जो भी है, सबको जन्नत नसीब हो गया
बस यही दोहरा मापदंड हमारे चेलों को खल गया।
आप तो मानोगे नहीं,
और मानोगे भी कैसे? आप तो जिद्दी हो
मारते बाद में हो, पहले रुलाते हो।
पर आपकी सेना से यहीं पर एक बड़ा अपराध हो गया
अरे! अजहर को भी मार देते
या फिर उसके परिवार में किसी को तो
रोटी बनाने के लिए ही सही छोड़ देते।
तो आपका या आपकी सेना का क्या बिगड़ जाता?
आपकी सेना को इतना निष्ठुर भी नहीं होना था
कम से कम इतना तो सोचना ही चाहिए था
कि बेचारे को रोटी बनाना भी नहीं आता,
या आपको और आपकी सेना का
इतनी संवेदना का भाव भी नहीं गुदगुदाता।
शायद आप सबकी समझ कमजोर हो गई है,
एक अदद विकेट लेने में कौन सी बड़ी मुश्किल थी।
जरा देखिए! बेचारा कितना रो रहा है,
आपको और एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों को
भले ही यह लगता होगा
कि वह अपने परिजनों के मरने से दुखी हैं,
पर मेरा विश्वास कीजिए, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
वो बेचारा तो इसलिए रो रहा है
अपने न मरने पर अफसोस कर रहा है।
वो बेचारा मासूम, भोलाभाला यह सोचकर रो रहा है
कि अब वह आतंकवाद फैलाएगा
या रोटी बोटी का इंतजाम कर स्वयं चूल्हा जलायेगा
कच्चा पक्का पकाकर खाएगा या फिर भूखा मर जायेगा।
आपको मेरा एक मानवीय सुझाव है
जिस पर तत्काल अमल कीजिए,
उसे भी प्यार से जन्नत भेज दीजिए।
और जब तक ऐसा नहीं करना है,
तब तक बेचारे के लिए कम से कम पेट भरने के लिए
रोटी बोटी का नियमित इंतजाम करवा दीजिए।
नाश्ते का जुगाड़ वो खुद कर ही लेगा
बेचारा किसी तरह भूखों मरने से बच जाएगा।
तब तक आपको और आपकी सेना को भी
उसे जन्नत भेजने के लिए भरपूर समय मिल जायेगा,
और मेरे चेलों के चेहरों पर फिर से मुस्कान आ जायेगा।

सुधीर श्रीवास्तव ( यमराज मित्र)

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हास्य व्यंग्य
यमलोक को मोदी उपहार
****************
सुबह-सुबह मित्र यमराज अचानक घर आ गये
मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए बड़ा खुश नजर आ रहे थे,
बिना दुआ सलाम के कहने लगे
प्रभु! आप अभी तक सो रहे हो
लगता है आजकल बहुत लापरवाह हो गये।
मैंने झुंझलाते हुए कहा -
यार भेजा खाने थोड़ी देर बाद नहीं आ सकता था?
या मेरा बीपी बढ़ाने में ही तुझे आता है मजा?
यमराज प्यार से कहने लगा-
प्रभु जी! कैसी बहकी-बहकी बातें आज कर रहे हो
या अभी तक नींद में ही बड़बड़ा रहे हो।
मैं भड़क गया - अब तू चुप हो जा
या वापस यमलोक चला जा
वरना अनर्थ हो सकता है
हमारे साथ तेरी मित्रता का रिश्ता अभी टूट सकता है।
यमराज हड़बड़ाया -न न प्रभु ऐसा बिल्कुल मत करना
वरना सारा गुड़ गोबर हो जाएगा
थोक में पाक आतंकी आत्माओं के
यमलोक आगमन की खुशी पर पानी फिर जाएगा,
फिर मेरी इस मिठाई का क्या मतलब यह जायेगा?
यमराज की बात सुनकर मैं गंभीर हो गया
उसकी मासूमियत देखकर मजबूर हो गया,
उसके हाथ से मिठाई का डिब्बा ले लिया
पांच छः लड्डू फटाफट गटक गया।
यमराज ने लपककर मेरे हाथ से डिब्बा छीन लिया
बस प्रभु! आपका शुगर बढ़ जायेगा
औरों के लिए लड्डू कम पड़ जायेगा।
अरे यार! एक तो तूने मुझे जगा दिया
मेरी पाकिस्तान यात्रा का सत्यानाश कर दिया,
आपरेशन सिंदूर से दूर कर दिया,
कम से कम हजार का लक्ष्य था
तूने सौ के भीतर ही अटका दिया।
यमराज हाथ जोड़कर कर मासूमियत से कहने लगा-
क्षमा प्रभु! मैं मजबूर था
अपनी खुशी के भारी दबाव में था।
मोदी जी ने आज एक और अच्छा काम कर दिया
मेरी और मेरे चेलों का काम आसान कर दिया।
एक साथ इतने सारे आतंकी आत्माओं को एक साथ
कचरा गाड़ी से यमलोक भिजवा दिया,
पहलगाम का बदला ले लिया,
थोड़ा ही सही कलेजे को ठंडक पहुँचा दिया,
आपरेशन सिंदूर से आतंकी गंदगी को
कुछ हद तक झटपट साफ करवा दिया,
आपरेशन सिंदूर के दूसरे चरण का संकेत दे दिया,
पर आप नहीं जानते कि हमें इससे क्या फर्क पड़ गया?
दरअसल थोक में आत्माओं को
यमलोक ले जाने में होने वाली असुविधाओं का भी
मोदी जी ने पहले ही संज्ञान ले लिया,
और एक दर्जन कचरा गाड़ी बिना किसी डिमांड के सीधे यमलोक भिजवा कर उपहार दे दिया,
और हमें कल हो सकने वाली असुविधाओं का भी
आज ही समाधान दे दिया।
तभी तो कहूँ कि मेरे चेले चपाटे भी ऐसा क्यों कह रहे हैं
या किसी आतंकवादी संगठन के चंगुल में फंस गए हैं
जो मोदी है, तो मुमकिन है, का गान गाकर
जमकर भाँगड़ा कर रहे हैं
आतंकियों ने मोदी को बताने का कहा था-
भोले- भाले बेचारे मोदी जी ने
उनका संदेश बड़े प्यार से सुन लिया
और बड़ी शालीनता से जवाब भी भिजवा दिया है,
बस! इतनी छोटी सी बात ने
यमलोक को भी उल्लास से भर दिया है,
और लड्डू के चक्कर में मेरे बजट का तो
सत्यानाश किया कोई बात नहीं,
अपने साथ मेरी भी नींद खराब कर दिया है
मुझे आपके पास लड्डू लेकर आने
और आपको जगाने के लिए मजबूर कर दिया है,
अब आप ही बताओ क्या मुझसे भी कोई गुनाह हो गया?

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य व्यंग्य
यमलोक वाचस्पति सम्मान

अभी-अभी मित्र यमराज घर आ गये,
यमलोक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय
और सर्व शोध संस्थान
बनाने का प्रस्ताव लेकर अड़ गये।
मैं झुंझलाया- ये कौन सा खुराफात तेरे मन में आया।
यमराज हाथ जोड़कर बोला -
बस! प्रभु - आप चुपचाप रहिए
जो कहता हूँ, मौन रहकर सुनिए,
मेरी पीड़ा को भी तनिक महसूस कीजिए,
या फिर मुझे और मेरे चेलों को भी
विद्या वाचस्पति दिलवा दीजिए।
यमराज की बात सुनकर मैं चकरा गया
आज इसने मुझे कहाँ फँसा दिया?
मैंने प्यार से समझाया -
भला मैं तुम सबको
विद्या वाचस्पति कैसे दिलवा सकता हूँ?
जब मैं किसी संस्था, शोध संस्थान या विश्वविद्यालय का
कुलाधिपति, कुलपति या कुलसचिव भी नहीं हूँ,
न ही मेरा कोई इष्ट मित्र ही इस लायक है
जो मेरी सिफारिश पर तेरे मन की मुराद पूरी करवा दे।
और जो हैं भी वो सब लूट लेना चाहते हैं
विद्या वाचस्पति, विद्या सागर की आड़ में
अपना घर भर लेना चाहते हैं,
सच कहूँ! तो सिर्फ अपनी दुकान चलाता चाहते हैं।
यमराज ने बीच में मुझे रोक कर कहा -
प्रभु जी! आप नाहक हैरान, परेशान न हो रहे हो
मेरी बात पर फिर भी नहीं विचार कर रहे हो,
बस! आप मुझे अपनी स्वीकृति भर दीजिए
मेरी संस्था का कुलाधिपति बनना सहर्ष स्वीकार कीजिए,
कुलपति तो मैं हो ही जाऊँगा,
कुलसचिव आप अपने हिसाब से
जिसको चाहें मनोनीत कर दीजिए
अच्छा होगा भौजाई को ये उपहार में दे दीजिए।
विश्वास कीजिए एक साल में इतिहास बन जाएगा
धरती से यमलोक तक हर कोई
वाचस्पति वाला डाक्टर हो जाएगा,
सबके हाथ में यमलोक वाचस्पति सम्मान
जब आपकी अपनी संस्था की ओर से
मुफ्त में बाँटा जाएगा।
मैं हक्का बक्का रह गया
यमराज ये क्या कह गया?
यमराज अपनी रौ में कहता रहा
दुनिया जानती है, मैं आपका मित्र हूँ,
फिर भी मुझे विद्या वाचस्पति अब तक नहीं मिला,
फिर भी आप चाहते हैं मैं न करुँ कोई गिला।
वैसे भी मैं आपका सम्मान करता हूँ,
इसीलिए इतने प्यार से तो अनुरोध करता हूँ,
आप मेरे प्रस्ताव अस्वीकार कीजिए
फिर देखिए! मैं सबकी दुकान बंद करवा दूँगा
जिंदा हो या मुर्दा, हर किसी के नाम
यमलोक वाचस्पति सम्मान मुफ्त जारी करवा दूँगा,
आपकी अपनी संस्था का नाम ब्रह्मांड विश्व रिकार्ड में
दर्ज कराकर ही वापस यमलोक वापस जाऊँगा।
वैसे भी आपको कुछ नहीं करना है
सब कुछ मैं कर लूँगा,
आपका हस्ताक्षर भी मैं ही कर लूँगा
बस! अपना सपना पूरा करने के लिए
इसके लिए सिर्फ आपका आशीर्वाद चाहूँगा,
अपने चेले चपाटों को भी यमलोक वाचस्पति देकर
डाक्टर लिखना सिखाऊँगा,
जब मैं स्वनिर्मित विश्वविद्यालय का कुलपति हो जाऊँगा,
आपको हमेशा ही सिर पर बिठाकर घुमाऊँगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई - कहें सुधीर कविराय
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विविध
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किसने किसको कब जाना है।
किसने किसको पहचाना है।।
यही राज तो लुका छिपा है।
जाने ये किसकी किरपा है।।

हमको जिसने भी जाना है।
लोहा  मेरा  वो  माना है।।
तुम मानो अब मेरी बातें।
त्यागो मन की सब प्रतिघातें।।

नहीं हाथ कुछ आने वाला।
रहा नहीं कोई दिलवाला।।
मत दिमाग अपना चलवाओ।
लोगों को अब मत भरमाओ।।

यह जो भी समझ नहीं पाता।
कल में वही बहुत पछताता।।
गाँठ बांधकर तुम रख लेना।
राज सभी को समझा देना।।

कविता अपनी आप सुनाओ।
शाबाशी दुनिया की पाओ।।
मातु शारदे कृपा करेंगी।
वो ही बेड़ा पार करेंगी ।।

कौन आज है आने वाला।
डेरा यहां जमाने वाला।।
इतना तुमको पता नहीं है।
या चित्त तुम्हारा और कहीं है।।

मातु पिता की बातें मानो।
मूरख तुम उनको ना जानो।।
वही हमारे जीवन दाता।
हम सबके हैं भाग्य विधाता।।

मेरे मन जब भाव‌ समाया।
छंद सीखने तब मैं आया।।
गुरुवर मुझको छंद सिखा दो।
चौपाई का ज्ञान करा दो।।

नाहक में तुम धैर्य हो खोते।
जानें तुम क्यों रहते रोते।।
हार जीत जीवन का हिस्सा।
नहीं सुना क्या तुमने किस्सा।।

कभी नहीं कहता जग सारा।
कोशिश करने वाला हारा।।
खुद को जिसने कभी न जाना।
उसको सबने हारा माना।

जिसकी सफल साधना होती।
जीवन उसको लगता मोती।।
उसकी सुंदर बने कहानी।
बीता कल क्या किसने जानी।।

नहीं हार से तुम घबराना।
हार भूल फिर से जुट जाना।।
जीत हार क्रम लगा रहेगा।
रोने से कुछ नहीं मिलेगा।।

आरोपों से भग मत जाना।
हर मुश्किल से तुम टकराना।।
हारी बाजी तुम जीतोगे।
कुंदन बन कल फिर चमकोगे।।

ईर्ष्या द्वेष न मन में लाना।
अपना कदम बढ़ाते जाना।।
सरल किसी की राह नहीं है।
जीता वो जो डरा नहीं है।।

मात-पिता का कहना मानो।
उनको अपना सब कुछ जानो।।
जीवन तब खुशहाल बनेगा।
और संग आशीष रहेगा।।

हर प्राणी का दुख मिट जाये।
जीवन सबको सुखमय भाये।।
हर कोई तुमको है प्यारा ।
सबको केवल एक सहारा।।

बिटिया कहती सब-जन जागे।
फिर शासन सत्ता क्यों भागे।।
आखिर उसका दोष बता दो।
दोष नहीं तो न्याय दिला दो।।

जब उसका अपराध नहीं है।
फिर उसकी क्या मौत सही है।।
जिम्मेदारी से मुँह मोड़े।
राजनीति के घोड़े दौड़े।।

आज देश में होता खेला।
नारी का क्यों लगता मेला।।
आशाएं अब क्षीण हो रही।
न्याय नाम क्या लीग चल रही।।
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सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा - कहें सुधीर कविराय
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धार्मिक
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आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।

भोले बाबा आप ही, करिए कोई जुगाड़।
मैया कर देंगी कृपा, हो जाएगा कल्याण।।

दुर्गा मैया की हो रही, भक्तों जय जयकार।
बरस रही माँ की कृपा, ले लो हाथ पसार।।

हाथ जोड़ हनुमंत से, विनय करें यमराज।
प्रभो बुढ़ापा आ गया, नहीं हो रहा काज।।

मुश्किल में यमराज जी, फँसे हुए हैं आज।
हनुमत जी रक्षा करें, चित्रगुप्त जी काज।।
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यमराज
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उत्सव जीवन-मृत्यु है, करते हो क्यों भेद।
कहते हैं यमराज जी, करो व्यक्त सब खेद।।

आये थे यमराज जी, लेने मुझको आज।
चलो हमारे संग में, किया बहुत है काज।।

मैय्या के दरबार में, आये हैं यमराज।
हाथ जोड़ विनती करें, रखिए सबकी लाज।।

हाथ जोड़ यमराज जी ,खड़े राम दरबार।
सबसे पहले कीजिए, प्रभु मेरा उद्धार।।

सुबह-सुबह ही आ गये, द्वार यार यमराज।
चले अयोध्या धाम को, छोड़छाड़ सब काज।।

आज मित्र यमराज ने, किया अनोखा काम।
बिना कहे ही डाल दी, अर्जी मेरे नाम।।

इतना खुश पहले कभी, कब थे प्यारे मित्र।
क्या तुमने खींचा नया, सिया राम का चित्र।।

खुशी-खुशी यमराज जी, आज पधारे द्वार।
बड़ी शिकायत आपकी, किया राम दरबार।।

विनय करूं यमराज से, शीश झुका कर आज।
आप बचाओ मित्र से, बिगड़ रहा मम काज।।

रघुबर के दरबार में, पहुँच गये यमराज।
मुझे शरण अपनी रखें, देकर नूतन काज।।

महाकुंभ में आ रहे, प्रिय कविवर यमराज।
आना हो तो आइए, अपना बस्ता साज।।

मिलकर हम सब करेंगे, अपने मन की बात।
मस्ती अरु हुड़दंग में, बीत जाएगी रात।।

चित्रगुप्त जी कह रहे, सुनो मित्र यमराज।
बिगड़ रहा समाज क्यों, मुझे बताओ आज।।
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विविध
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चादर मैली आपकी, फिर भी बड़ा गुरूर।
हमको है इतना पता,आप बड़े मगरूर।।

आज कीजिए आज तो, नारी का सम्मान।
आज यही सबसे बड़ा, मान लीजिए दान।।

चलते फिरते हम सभी, करते ऐसा काम।
और मुफ्त में हो रहे, नाहक ही बदनाम।।

आडम्बर है हो रहा, देखो चारों ओर।
छिपकर बैठे देखिए, रंग - बिरंगे चोर।।

वे घमंड में चूर है, बाँट रहे गुरुज्ञान।
और गर्व से स्वयं ही, अपना करें बखान।।

जीवन की परीक्षाओं से , कहाँ तक भागोगे।
आज हो रहे हार तो, कल जीत जाओगे।।

राजा वो होता स्वयं, सत्पथ जिसकी चाह।
रंक वही होता बड़ा, रहता लापरवाह।।

प्रातःकाल की नव किरणें, देती हैं संदेश
मन में अपने न रखो, कभी किसी से द्वेष।।

प्रणय पटल पर आपका, स्वागत है श्रीमान।
आप हमारे साथ हैं, बढ़ता मेरा मान।।

नियमों का पालन करें, मत करिए अभिमान।
वरना दुनिया जानती, कितना किसको ज्ञान।।

सरयू तट पर सज गया, कविता पाठ का मंच।
चाय नाश्ता संग में, मिलकर होगा लंच।।

प्रभु राम दरबार में, कविगण आये आज।
सभी अवध के धाम में, अपने सुर अरु साज।।

कविता पढ़ने आ गये, आप सभी हम आज।
कृपा राम जी की मिले, पूरण हों सब काज।।

स्वागत वंदन आपका, करुँ आपका मित्र।
मिल कर खींचे हम सभी, नव कविता का चित्र।।

नियम तोड़ना काम है, मेरे प्यारे मित्र।
चाहे जैसा खींच दो, आड़ा टेढ़ा चित्र।।

धक्का देने के लिए, सदा रहो तैयार।
मान लीजिए सूत्र ये, जीवन का उद्धार।।

सभी स्वयं में श्रेष्ठ हैं, जान रहे हम आप।
फिर क्यों ईर्ष्या द्वैष का, करते रहते पाप।।

शीश झुकाता आपको, दया करो प्रभु आप।
नाहक दुःख क्यों दे रहे, लेने को अभिशाप।।

कहते हैं यमराज जी, छोड़ो जीवन मोह।
आखिर सहना आपको, कल में मित्र विछोह।।

कलम उठाओ जब कभी, लिखना मोहक भाव।
भाव नहीं ऐसे लिखें, जो जन-मन दे घाव।।

संयम से रहिए सभी, सबको दीजै प्यार।
हर प्राणी का हो यही, जीवन का आधार।।

बड़े प्यार से ठग रहे, अब अपने ही लोग।
फिर भी कहते आप हैं, ये तो है संयोग।।

जिसको कहते गर्व से, अपने हैं ये लोग।
छुरा पीठ में घोंपते, बने वही हैं रोग।।

हमने जिनको भी दिया, खूब मान-सम्मान।
आज वही हैं दे रहे, बदनामी का दान।।

नहीं किसी के आजकल, मत आना तुम काम।
गाँठ बाँध लें आप सब, होगे बस बदनाम।।

कुछ लोगों को है चढ़ा, नाहक बड़ा गुरूर।
चर्चा उनकी हो रही, आदत से मजबूर।।

काहे इतना चूर हो, आप नशे में यार।
संग तुम्हारे खड़े हैं, साथी केवल चार।।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य
यमराज का सुझाव : स्व पिंडदान
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सचमुच मित्र क्या होता है?
यह पूरी तरह मैं आज ही समझ पाया,
गुस्से के साथ खूब आनंद भी आया।
मानिए न मानिए आपकी मर्जी!
पर पहली बार किसी का सुझाव
सचमुच मेरे मन को भाया,
अब आप अधीर न होइए जनाब
यह सुझाव आपकी तरफ से नहीं
मेरे प्यारे मित्र यमराज की तरफ से आया।
अब इसमें ईर्ष्या द्वैष जैसी बात तो नहीं कोई
जो आपके मन में दुश्मनी का भाव ले आई।
माना की लोकतांत्रिक व्यवस्था में
हम-आप, सब पूरी तरह आजाद हैं,
तब आप सब ही बताइए
यमराज को क्यों नहीं ये अधिकार है?
खैर.....! छोड़िए बेवजह विवाद हो जायेगा
और मेरा मित्र मुझे दोषी मानकर मुझसे दूर हो जायेगा,
सब कुछ सह लूँगा, पर यमराज से दूर होकर
खुश तो बिल्कुल नहीं रह पाऊँगा।
चलिए छोड़िए इन बेकार की बातों को
और यमराज के सुझाव पर आप भी गौर कीजिए
उसने जो मुझे सुझाव दिया- उसे भी सुन‌ लीजिए,
यमराज ने मुझे बस इतना भर सुझाया-
जब तक जीना है, जीते रहना आप प्रभु
पर सबसे पहले मेरी बात पर भी ध्यान दीजिए
बस! एक नेक काम अपने आप कर लीजिए
और अपने सारे काम छोड़-छाड़कर
सबसे पहले अपना अपने आप से पिंडदान कर लीजिए,
फिर सूकून की साँस लीजिए।
पहले तो हड़बड़ाया, फिर मुस्कराया
ऐसा देख यमराज को बहुत गुस्सा आया,
कहने लगा- वाह हहहहहहह प्रभु! आप मुस्कुरा रहे हो
या मेरा उपहास कर रहे हो,
माना कि आप मेरे मित्र हो, कुछ भी कर सकते हो
पर मेरे सुझावों पर विचार भी तो कर ही सकते हो।
पहले मेरी बात ध्यान से सुनिए-फिर मुँह खोलिए
तार्किक ढंग से मेरे सुझावों को दरकिनार कीजिए।
फिर मैं आप का हर निर्णय मान लूँगा,
और क्षमा याचना के साथ अपना सुझाव
बिना किसी तर्क वितर्क के वापस ले लूँगा,
अन्यथा जीते जी आपको अपना पिंडदान करने के लिए
हर हाल में विवश तो कर ही दूँगा।
यमराज की बात सुन अब मुझे भी लगने लगा
इतना प्यारा तो कोई अपना नहीं सगा,
उससे अपनी बात आगे बढ़ाने का आग्रह
मगर पहले जलपान का आफर दिया।
यमराज ने आफर ठुकराया, सीधे मुद्दे पर आया।
आपके लोक की माया विचित्र होती जा रही है
इसकी तस्वीर आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही है,
जीते जी जो पानी भी पूछना नहीं चाहती,
पिंडदान की बात तो उसके ख्वाब में भी नहीं आती है,
यह सब कोरी बकवास और अंधविश्वास समझती है,
ढंग से दाह संस्कार तो कर नहीं पाती
फिर पिंडदान उनके लिए भला कैसी थाती?
वैसे भी आज हर रिश्ता स्वार्थ पर टिक गया है
कौन मरता, कौन जीता किसको मतलब है,
क्या आपके भेजे में इतना भी नहीं आता है?
फिर आपका अपना है ही क्या
जिसका कोई लालच करेगा
या आपके बाद जिससे किसी का कुछ हला भला होगा,
और आने वल में उसके काम आयेगा।
हजार दो हजार कविताएं कहानियाँ, लेख, आलेख
और यमराज मेरा यार सहित आपके अपने
दस बारह गद्य-पद्य संग्रह सहित
चार छ: सौ साहित्यिक पुस्तकों को कोई भाव नहीं देगा,
आपकी मौत के बाद और दाह संस्कार से पहले
ये सब रद्दी के ठेले पर जा रहा होगा।
आपके अपनों की नजर में यह सब कूड़े का ढेर
और अनावश्यक जगह घेरने वाला हो जाएगा।
फिर भी आप सोचते हैं कि कोई आपका पिंडदान करेगा?
तो मेरे भी दावे पर विश्वास कीजिए
कड़ुआ सच सबके सामने आ जायेगा,
जब आपका दास संस्कार चंदे से
और किराए पर कराया जायेगा।
अब आपको सोचना है कि करना क्या है?
मरकर बिना पिंडदान के भटकना है
या सूकून की साँस लेते हुए यमलोक में रहना है,
अब इसके बाद मुझे कुछ नहीं कहना है,
बस! मुझे यमलोक वापस निकलना है।
मैंने उठकर उसका हाथ पकड़ कर कहा -
तू अभी कैसे चला जायेगा,
मेरे पिंडदान की जिम्मेदारी तब कौन निभायेगा?
इसके लिए तुझसे बेहतर यह जिम्मेदारी
भला और कौन निभाएगा?
तू तो मेरा यार, मेरा शुभचिंतक, मेरा भाई है
तेरे सुझावों पर अमल करने की
अब मैंने भी कसम खायी है,
तेरी बदौलत ही सही, पिंडदान की ये घड़ी आई है
मेरे यार तू इतना चिंतित क्यों होता है?
मेरे लिए यह सब न लगेगी जगहंसाई है
अब तो मुस्करा दे मेरे यार यमराज
तेरे यार के पिंडदान की शुभ घड़ी
आखिर तेरे हिस्से में जो आई,
मुझे भी सा लगने लगा है
इसी में है अब मेरी भलाई।

सुधीर श्रीवास्तव

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यमराज का देहदान
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अभी अभी मेरे मित्र यमराज पधारे
खुश इतना थे जैसे तोड़ लिए हों चाँद तारे।
मैंने हमेशा की तरह प्यार से बिठाया, जलपान कराया
और चाय न पिला पाने का खेद भी
साथ में व्यक्त कर दिया,
स्थानापन्न व्यवस्था के नाम पर एक गिलास सत्तू
नमक मिर्च के साथ घोल कर दिया,
बंदा बड़ा होशियार निकला
और सत्तू का महत्व शायद जानता था
इसीलिए बड़े भोलेपन से एक गिलास और माँग लिया,
लगे हाथ मेरे हिस्से का भी बेशर्मी से गटक गया,
कोई बात नहीं आखिर मेरा यार है,
तो उससे कैसा गिला- शिकवा?
थोड़ी देर तक अपने पेट पर मस्ती से हाथ फेरता रहा,
मेरी तारीफों के पुल बनाया रहा,
आनंद आ गया प्रभु, एकाध कुंतल मुझे भी दे दो,
मैंने पूछा - तू इतना क्या करेगा?
वाह प्रभु! इतना भी नहीं जानते
या जानबूझकर नहीं समझते।
अपने चेले चपाटों के लिए ले जाऊँगा
अपने साथ-साथ उन्हें भी गर्मी भर
रोज एक -एक गिलास पिलाऊँगा
और मिलकर खूब आनंद उठाऊँगा।
पर प्रभु! आप मेरा एक काम कर दीजिए
मेरे भी देहदान का सार्वजनिक ऐलान कर दीजिए,
कागजी खानापूर्ति भी लगे हाथ करवा दिया
और एक प्रमाण पत्र भी दिलवा दीजिए।
मैं यमलोक में देहदान जागरूकता अभियान चलाऊँगा
यमलोक में भी देहदान की ज्योति जलाऊँगा,
अपना जीवन धन्य बनाऊँगा,
अपने राष्ट्र-समाज के कुछ तो काम आऊँगा।
यमराज की बातें सुन मेरी आँख भर आई,
मैं कहने को विवश हो गया - तू सचमुच महान है भाई।
वास्तव में तेरी सोच ऊँची है
लोग तुझसे डरते हैं, क्योंकि उनकी नियत खोटी है,
कम से कम तू राष्ट्र- समाज के लिए इतना तो सोचता है
तभी तो देहदान की खातिर आया है,
मन में कोई गिला शिकवा, शिकायत, लालच नहीं
खुद के देहदान की खातिर पवित्र मन के साथ
स्वयं ही चलकर आया है,
हम मानवों के लिए एक नजीर भी लाया है
कि यमराज खुद चलकर देहदान के लिए आया है।

सुधीर श्रीवास्तव

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