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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(14k)

मृत्यु से मुलाकात करते हैं
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आइए! फुर्सत में दिख रहे हैं,
तो कुछ काम ही करते हैं
फिर आज तो मुझे भी कोई काम नहीं है
तो चलो मृत्यु से ही मुलाकात करते हैं
और अपना समय पास करते हैं।
कुछ अपनी कहते, कुछ उसकी सुनते हैं
अपने जज्बातों का आदान-प्रदान करते हैं
शिकवा शिकायतों से अपना मन ही हल्का करते हैं।
अब इसमें इतना संकोच कैसा?
हम वो हैं, जो इतिहास लिखने का दम रखते हैं।
अरे भाई चिंता क्यों करते हों?
मृत्यु के नाम से थर-थर काँपते क्यों हो?
चलो तुम्हारी जान-पहचान संग यारी भी करा देते हैं,
अपने इस शुभचिंतक की एक कप चाय पीते हैं
समय रहा तो खा-पीकर वापस आते हैं
एक समय का ही सही, अपने घर का राशन बचाते हैं।
अब इतना भी क्या शर्माना?
आज का यही है नया जमाना,
जीवन हो या मृत्यु, हर किसी से रिश्ता निभाना
जिसने इतना भी न जाना,
उसके लिए आज भी है ज़माना वही पुराना,
जिसने मृत्यु को नहीं जाना
सच मानो उसका जीवन हुआ बेगाना।
कर लेता है जो मृत्यु से यारी
वो ही अपने जीवन में जाता अच्छे से पहचाना।
इसीलिए आओ! समय का उपयोग करते हैं
फुर्सत में जब आज हम-दोनों ही हैं,
संग-संग चलकर मृत्यु से मुलाकात करते हैं,
हम कैसे जीते हैं, सारी दुनिया को दिखाते हैं
यारी-दोस्ती का एक और अध्याय लिखते हैं,
हम समय का दुरुपयोग नहीं करते,
उसका सदुपयोग करने के लिए हम जाने जाते हैं।
भेंट मुलाकात में ही समय बिताते हैं।
मृत्यु को भी नया आइना दिखाते हैं,
अपने जलवे का नमूना आज मृत्यु को भी दिखाते हैं
अरे यार तू इतना डरता क्यों है?
लगता है तू मृत्यु से बहुत डरता है?
जबकि डरना तो उसे चाहिए,
हम उससे मिलने नहीं, उस पर एहसान करने चल रहे हैं।
हमारे आवभगत का सौभाग्य पाने का
उसे एहसान मानना चाहिए,
हमारे यार को भी हमारे जैसा ही सम्मान देना है,
यह बात मृत्यु को भी गाँठ बाँध लेना चाहिए,
जब हम मृत्यु से तनिक भी नहीं डरते
तो तुझे भी बिल्कुल नहीं डरना चाहिए,
समय-समय पर इनसे-उनसे
भेंट मुलाकात कर समय काटते रहना चाहिए,
मृत्यु के साथ मिलकर अपना समय
हंसते -मुस्कराते हुए पास करना चाहिए,
कुछ और नहीं तो कभी-कभार
उस पर एहसान करते रहना चाहिए,
इसीलिए मृत्यु से मिलते रहना चाहिए।

सुधीर श्रीवास्तव

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नारा / स्लोगन
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शिक्षा का ना कोई मोल।
जीवन बन जाये अनमोल।।

बाँटो सदा ज्ञान का प्रकाश।
मिलेगा मन को संतोषाकाश।।

बाँटो जितना बढ़ेगा उतना
संग मिले सम्मान भी उतना।।

शिक्षक हमको शिक्षा देते।
जीवन की खुशियां भी देते।।

हर जन-मन एक वृक्ष लगाए।
हरी-भरी धरती मुस्काए।।

प्रदूषण को दूर भगाओ।
जन- जीवन को स्वस्थ बनाओ।।

ध्वनि प्रदूषण मत फैलाओ।
बीमारी को दूर भगाओ।।

जल जंगल जमीन बचाओ।
जिम्मेदारी आप निभाओ।।

कंक्रीट के जंगल बढ़ते।
कैसा मानव जीवन गढ़ते।।

ताल तलैया कुँए खो रहे।
खुशहाली के दौर रो रहे।।

बाग-बगीचे कहाँ बचे हैं।
केवल अब इनके चर्चे हैं।।

अब परिवार नहीं मिलते हैं।
बच्चे बालकपना खोते हैं।।

दादा-दादी, नाना-नानी।
इनकी केवल बची कहानी।।

पति पत्नी भी नये दौर में।
रहना चाहें अलग ठौर में।।

दौर हाइवे आज है आया।
वृक्षों की सामत है लाया।।

धर्म - संस्कृति का पोषक बनना।
निज जीवन को पावन रखना।।

मात -पिता आराध्य हमारे।
उनके बच्चे सबसे प्यारे।।

आपरेशन सिंदूर हुआ था।
पाकिस्तान बहुत रोया था।।

आपरेशन सिंदूर था भारी।
आई पाक के काम न यारी।।

सिंधु नदी का पानी रोका।
शूल पाक सीने में भोंका।।

भागम-भाग मचा जीवन में।
जैसे मानव है सदमे में।।

राजनीति का खेल निराला।
एक दूजा करता मुँह काला।।

राम अयोध्या आज पधारे।
रोशन हुए चौक-चौबारे।।

बच्चे समय से बड़े हो रहे।
नहीं किसी की बात सुन रहे।।

रिश्ते भी अब भाव खो रहे।
स्वार्थ सभी के बड़े हो रहे।।

मात- पिता लाचार हो रहे।
बच्चे उनसे दूर हो रहे।।

जाति-धर्म का खेल न खेलो।
ईश्वर अल्लाह आप न तोलो।।

राम रहीम में भेद नहीं है।
मानो कहना यही सही है।।

लव जिहाद का जाल है फैला।
जाने कितना मन है मैला।।

सुधीर श्रीवास्तव

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जीवन लक्ष्य
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जीवन का लक्ष्य निर्धारित कीजिए
उसके लिए किसी और पर आश्रित मत रहिए,
ये जिंदगी आपकी है
तो फिर इसकी बागडोर अपने हाथ ही रखिए।
सिर्फ लक्ष्य का नाटक मत करिए ।
लक्ष्य निर्धारित करने से पहले
खूब सोच विचार कर लीजिए,
क्या वास्तव में लक्ष्य पाने को आप तैयार हैं
खुद को खूब ठोंक बजाकर देख लीजिए
फिर ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प कीजिए,
पूरी शिद्दत, लगन से इसे हासिल कीजिए।
लक्ष्य भी ऐसा बनाइए
जो आपके सपनों से मेल खाता हो
न की आपका लक्ष्य ही
रोज-रोज आइना दिखाने को आतुर दिखता हो।
तब जीवन का लक्ष्य सफलता दिला सकता है
तब ही आपकाजीवन का लक्ष्य
सफलता का आयाम लिख सकता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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मोदी जी भारत रत्न दे दो
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कल मेरे मित्र यमराज ने अजूबा काम किया
मोदी जी को एक पत्र भेज दिया
पत्र की मातृभारती मुझे भी उपलब्ध करा दिया,
जिसे पढ़कर पहले तो मैं मुस्कराया
पर ईमानदारी से कहूँ तो फिर गुस्सा भी खूब आया।
उसने जो लिखा आप भी सुनिए
हंसिए, नाराज होइए या मजाक उड़ाइए
मगर पहले उसके पत्र का मजमून तो सुन लीजिए।
यमराज ने लिखा - सबके प्यारे मोदी जी
यमराज का प्रणाम स्वीकार कीजिए
और मेरी छोटी सी माँग पर यथाशीघ्र विचार कीजिए।
आप सबको कुछ न कुछ दे ही रहे हैं,
कुछ को माँग पर तो कुछ को बिना माँगे ही दे रहे हैं,
पर मैं जो चाहता हूँ, वो ऐसे आप दोगे या नहीं,
फिर भी शर्मोहया छोड़कर माँगकर रहा हूँ,
ज्यादा कुछ नहीं,
बस! अपने लिए सिर्फ भारत रत्न चाह रहा हूँ।
मगर आप परेशान न हों,
मैं भी बदले में कुछ दे ही रहा हूँ
यमलोक रत्न के लिए आपके नाम का
खुल्लम खुल्ला प्रस्ताव दे रहा हूँ।
आप कुछ भी करो, बस मुझे भारत रत्न दे दो
असली नहीं तो नकली ही दे दो,
हाथ जोड़कर कर फरियाद कर रहा हूँ,
प्यारे मोदी जी बस इतना सा एहसान कर दो।
चाहें तो खुफिया तंत्र से
मेरे चाल-चरित्र की जाँच करवा लें

सीबीआई -ईडी से पूछताछ करवा लें,
मेरे गरीब खाने पर छापा डलवा लें,
बैंक खाते सीज करा दें,
धन- संपत्ति की रिपोर्ट मंगवा लें।
आप कहो तो अपने मित्र से प्रस्ताव भिजवा दूँगा,
मिलने का समय दो तो साक्षात दर्शन भी दे दूँगा।
आप लोगों या विपक्ष की चिंता बिल्कुल मत करो
मैं एक साथ सबको सँभाल लूँगा,
जो ज्यादा चटर-पटर करने की कोशिश करेगा
उन सबके मुँह पर अलीगढ़िया ताला लगवा दूँगा,
आप इस समय जिसके बारे में ज्यादा सोच रहे हैं
उसके पीछे अपने चेलों को छोड़ दूँगा,
उसका हुक्का-पानी तक बंद करवा दूँगा
वैसे मुझे पता है, आप जो सोच भर लेते हैं
उसे पूरा करके ही साँस लेते हैं,
तो क्या मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते हैं?
वैसे राज की बात बताऊँ
मैं आपके बहुत काम आ सकता हूँ,
आपकी जगह चुनाव प्रचार कर सकता हूँ
लोगों को गुमराह कर सकता हूँ,
आपके लिए भीड़ जुटा सकता हूँ
वोट दिलवा सकता हूँ, सरकार बनवा सकता हूँ
भारत रत्न के लिए आपकी कुर्सी लेकर
आपके साथ हमेशा चल सकता हूँ,
उस पर किसी और बैठने से
हमेशा के लिए रोक सकता हूँ,
मतलब साफ़ है कि भारत रत्न के लिए
मैं सब कुछ कर सकता हूँ।
अब आप मुझे बताइए तो सही
इतनी योग्यताओं के बाद भी
भारत रत्न भला क्यों नहीं पा सकता हूँ?
यूँ तो ट्रंप अमेरिका रत्न देना चाहते हैं,
नोबेल पुरस्कार वाले चैन से जीने नहीं दे रहे हैं,
मुल्ला मुनीर भी 'निशान-ए-पाकिस्तान' देना चाहता है,
पर सामने आने से डर भी रहा है।
ईमानदारी से कहूँ तो मैं सम्मान का भूखा भी नहीं हूँ
और सिर्फ भारत रत्न चाहता हूँ।
आपसे बड़ी उम्मीद से फरियाद कर रहा हूँ,
वरना मैं अच्छे-अच्छों को घास भी नहीं डाल रहा हूँ,
इज्जत का सवाल आड़े आ जाता है
इसलिए पत्र के द्वारा अपनी बात कह रहा हूँ।
अब इतना सोच विचार करना है
तो मैं अपनी फरियाद वापस ले रहा हूँ,
मगर यमलोक रत्न आपको ही दिया जाएगा
इसका सार्वजनिक ऐलान के साथ
अपनी भावनाओं पर भी अंकुश लगा रहा हूँ,
और आपको बहुत शुभकामनाएं दे रहा हूँ
चिंता मत करिए मुझे कोई दु:ख नहीं हो रहा है,
क्योंकि आपके हाथों में भारत का भविष्य
पूर्ण सुरक्षित दिखने के साथ-साथ
विकास की नई गाथा लिख रहा है,
नये भारत की नई कहानी दुनिया को सुना रहा है
और जाने क्यों ऐसा लग रहा है
जैसे रोज-रोज एक नया भारत रत्न मुझे मिल रहा है,
इसका मुझे गर्व भी हो रहा है,
यूँ तो अपने मित्र के सिवा किसी के आगे झुकता नहीं हूँ
पर आपको एक बार नहीं,
बार-बार शीष झुकाने का दिल कर रहा है,
अब मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ,
आपने इतना समय मेरा पत्र पढ़ने में बर्बाद किया,
इसके लिए आपका धन्यवाद करता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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देव दीपावली
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कार्तिक मास की पूर्णिमा को
देव दीपावली मनाया जाता है,
इसके पीछे त्रिपुरासुर राक्षस के अत्याचारों से
देवताओं को मुक्त कराने के उद्देश्य से
भोलेनाथ शिव द्वारा उसके वध को माना जाता है।
देवताओं ने काशी में दीप जलाकर
विजय का उत्सव दीप जलाकर मनाया था,
तभी से इसे देव दीपावली कहा जाने लगा था।
मन के नकारात्मक भावों को दूर करने के लिए
गंगा स्नान की परंपरा और घाटों पर दीप जलाकर
उत्सव रुपी देव दीपावली मनाने की परंपरा है
यह उत्सव अद्भुत अनुभव कराता है।
इस दिन का आध्यात्मिक महत्व भी है
प्रकाश के अंधकार पर और ज्ञान के अज्ञान पर
विजय को प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
देव स्थान पर दीपक जलाया जाता है,
जिसे हमारे द्वारा दीपदान भी कहा जाता है।
इस दिन एक, इक्कीस, इक्यावन अथवा
एक सौ आठ दीप जलाये जाते हैं,
जिसे हम-आप सभी शुभ मानते हैं,
इससे अधिक दीपक भी हम
स्वेच्छा से जलाने के स्वतंत्रत हैं।
इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं
और इन्हीं दीपों के प्रकाश में अपनी
पावन उपस्थिति का भाव जगाते हैं।
मान्यता है कि इस रात भगवान विष्णु तो
क्षीरसागर में विश्राम भी करते हैं।
देव दीपावली के दिन शाम को पूजा-पाठ के बाद
पीली वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है,
किसी निर्धन, गरीब, असहाय को खाने-पीने की चीजों
या धन का दान करने का सुखद परिणाम मिलता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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आनंद
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आनंद क्या है?
हर किसी के लिए इसके अलग-अलग मायने हैं।
जो इसे जिस भाव में लेता है , आत्मसात करता है,
वो वैसे ही आनंद में जीता है।
कोई अपने सुख, तो कोई औरों के सुख में,
कोई सेवा भाव, तो कोई समाज, राष्ट्र की सेवा में
आनंद का सुख पा जाता है।
इतना ही नहीं कुछ ऐसे भी हैं
जो दीन-दुखियों, रोगियों, असहायों की
सेवा से असली आनंद उठाते हैं,
तो कुछ उन बुजुर्गो का सहारा बन
अपना जीवन धन्य बनाते हैं,
जिनसे उनके अपने ही मुँह मोड़ लेते हैं।
यह दुनिया बड़ी अजीब है साहब
यहाँ तरह-तरह के अपराध करने में भी
असीम आनंद उठाएं जाते हैं,
नकली चोले की आड़ में भी
नव आनंद खोजे जाते हैं,
और तो और
अब तो आनंद भी बाजारीकरण का
शिकार होते दिख ही जाते हैं।
इतिहास गवाह है कि आनंद का अनुभव
निज अंर्तमन से महसूस होता है,
जिसे शब्दों में ढालने का हर प्रयास
सिर्फ अधूरा-अधूरा सा आभास देता है,
और उलझाकर छोड़ देता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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मैं आग हूँ
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मेरी आवाज़ सुनो न सुनो
पर किसी भ्रम में न रहो,
मुझे दबाने का दिवास्वप्न शौक से देखो।
पर हर कोशिश के बाद हार जाओगे,
मुझे दबाने की हर कोशिश के बाद
सिर्फ मुँह की खाओगे।
क्योंकि मैं महज आवाज नहीं
अंगार हूँ, जल जाओगे।
मुझे रोक सकते हो तो रोक कर भी देख लो
अनदेखा करने का भी प्रयास कर लो
तुम कहते हो नजरअंदाज किया है मैंने
कल तक तो साथ निभाये थे हमने
आज इतना समझदार हो गये हो
कि अब अपने आप से ही शरमा रहे हो
समझौते का ख्वाब देख रहे हो
या घुट-घुट कर जी रहे हो
क्योंकि मैं वो आवाज़ हूँ,
जिसमें तुम झुलस रहे हो।
अब सब्र मुझको नहीं तुमको करना है
जो सहना है, तुम्हें ही सहना है,
सुनना भी अब तुमको ही पड़ेगा
सोच विचार कर लो- मुझसे क्या तुम्हारा भूत लड़ेगा?
बेवजह खैरख्वाह बनने का सब नाटक बेकार है,
जज्बातों से खेलना तुम्हारा पैदाइशी अधिकार है ।
स्वार्थ की पराकाष्ठा पार कर लो
या निज आत्मा की आवाज सुन लो,
मेरे आवाज की गूँज हर ओर सुनाई देगी
जो तुम्हें चैन से रहने भी नहीं देगी।
तुम मुझे समझना तो नहीं चाहते
लेकिन अपने बेसुरे राग में मेरी आवाज़ दबाना चाहते हो,
अपने स्वार्थ की आड़ में मुझे मोहरा बनाना चाहते हो।
कोशिश करते रहो, कुछ भी नहीं कर पाओगे
हर कोशिश के बाद भी अपना ही नकाब हटाओगे
और सच में बहुत पछताओगे
अपने ही अंतरात्मा की आवाज में
खुद ही गुम होकर जब रह जाओगे,
फिर कैसे मुँह दिखा पाओगे?
अरे मेरा छोड़ो, क्या सोचा भी है तुमने
क्या मेरी आवाज़ का सामना करने की
फिर हिम्मत भी दिखा पाओगे?
फिर से समझा रहा हूँ लंबरदार
कि मैं वो आग हूँ, जिसमें जलकर तुम खाक हो जाओगे
और गुमनाम बन जाओगे,
तब दिवास्वप्न देखने लायक भी नहीं रह पाओगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) पर राष्ट्रीय एकता दिवस विशेष
व्यंग्य - रन फॉर यूनिटी
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लौह पुरुष सरदार पटेल जी के जन्म दिवस पर
हम सब राष्ट्रीय एकता दिवस मनाते हैं,
जिला, प्रांत, राष्ट्र स्तर पर 'रन फॉर यूनिटी' का
भव्य से भव्यतम आयोजन करते-कराते हैं।
सच कहें तो हम लौह पुरुष पर बड़ा अहसान करते हैं
इस दिन तो हम सब एकता की बात करते हैं,
एकता की औपचारिकता ही सही, निभाते तो हैं।
हम सब इतने समझदार हो गए हैं,
जो लौह पुरुष की राह पर चलने की बात तो करते हैं
यह और बात है कि हम खुद उसका अनुसरण नहीं करते
फिर भी एकता का शोर तो खूब करते हैं,
यहीं क्या कम है कि हम सब लौह पुरुष को
इसी बहाने याद तो करते हैं,
एकता दिवस के नाम पर इतना काम तो करते हैं।
अब इसमें हमारा तो कोई दोष नहीं
जो एकता की बात भाषणों में तो अच्छी लगती है,
मगर उसकी अहमियत हमारे ही समझ में नहीं आती,
तभी तो आज भी हमें एकता की कहानियाँ सुनाई
और 'रन फॉर यूनिटी' से एकता की घुट्टी पिलाई जाती है।
लौह पुरुष को याद करने के दिवस विशेष को
हम सब सिर्फ याद ही नहीं करते,
बल्कि भव्यता के साथ राष्ट्रीय एकता दिवस के नाम पर
विविध आयोजन करके उन्हें नमन वंदन तो करते हैं,
अपने श्रद्धा सुमन भी बड़ी श्रद्धा से अर्पित करते हैं,
भव्य से भव्यतम एकता दिवस हर साल मनाते हैं,
और एकता की बात को अगले साल तक के लिए
इस बार भी विराम देते हैं,
लौह पुरुष से क्षमा याचना कर शत-शत प्रणाम करते हैं, एकता की बात तो फिलहाल छोड़ते हैं,
आज अभी सिर्फ 'रन बार यूनिटी' दौड़ में
सब मिलकर प्रतिभाग करते हैं,
और राष्ट्रीय एकता दिवस को सार्थकता को
एक नया आयाम देते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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1- यम द्वितीया (भाई दूज)
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भाई-बहन के पवित्र प्रेम, प्यार का प्रतीक है
धर्म ग्रंथों इसके बारे में उल्लिखित है
कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन
यमुना ने भाई यम को अपने घर बुलाकर
स्वागत सत्कार कर भोजन कराया था।
तभी से ये त्योहार भाई-दूज के नाम से मनाया
और यम द्वितीया नाम से भी जाना जाता है।
यमुना के भाई, मृत्यु के देवता यमराज ने
प्रसन्न होकर बहन को वरदान दिया था
कि जो व्यक्ति आज के दिन यमुना में स्नान कर
उनका पूजन अर्चन करेगा,
मृत्यु के पश्चात उसे यमलोक में नहीं जाना पड़ेगा।
सूर्य पुत्री यमुना कष्ट निवारणी देवी स्वरूपा हैं।
यम द्वितीया की पूजा का सरल विधान है,
भावों की पावनता और आत्मीयता ही निदान है।
भाई-बहन एक दूजे के दीर्घायु जीवन के लिए
यम के चित्र/प्रतिमा का पूजन के बाद अर्घ्य देकर
विश्वास के साथ यमदेव से प्रार्थना करें।
कि अष्ट चिरंजीवियों मार्कण्डेय, हनुमान,
परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य, बलि
और अश्वत्थामा की तरह मम भ्रात को
चिरंजीवी होने का वरदान दें।
तत्पश्चात बहन भाई को भोजन कराए
भोजन के बाद भाई को तिलक लगाए,
भाई भी सामर्थ्य अनुसार बहन को भेंट लाये।
पुरातन विश्वास और मान्यता है
यह द्वितीया के दिन जो बहन अपने हाथ से
अपने भाई को भोजन कराती है
उसके भाई की उम्र तो बढ़ती है
उसके जीवन के सारे कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
स्कंद पुराण में इसका वर्णन मिलता है
इस दिन यमराज को प्रसन्न करने
और पूजन करने से मनोवांछित फल
धन-धान्य, यशस्वी, दीर्घायु जीवन का वर संग
यमराज की कृपा का सौभाग्य मिलता है।
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2 - यम द्वितीया (भाई दूज)
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कार्तिक शुक्ल की द्वितीया को
अपने भ्राता यम को अपने घर बुलाया,
प्यार दुलार सत्कार से भोजन कराया
तबसे यह दिवस यम द्वितीया कहलाया।
प्रसन्न हो यम ने यमुना को वर दिया
इस दिन जो जन यमुना में स्नान कर
यम-यमुना का पूजन अर्चन करता
वो मृत्योपरांत यमलोक नहीं जाता
धन-धान्य, यशस्वी, दीर्घायु जीवन का
मनवांछित फल पाता।

सुधीर श्रीवास्तव

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मरने का सुख
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मरने का सबसे आसान रास्ता है
कि औरों की चिंता में दुबले होते रहिए,
दूसरों के मामले में टांग अड़ाते रहिए
और मरने का नियमित आनंद पाइए।
इससे आसान रास्ता हो तो, हमें भी बताइए,
अन्यथा बेवकूफों की तरह मुस्कराइए
और मरने के उपायों का भारत रत्न पाने के लिए
मेरे नियम और शर्तों को पढ़कर
सुुविधा शुल्क के साथ
अविलंब मेरे पास आवेदन भिजवाकर
खुद कतार में लग जाइए।
एक बार मरने से अच्छा है
रोज-रोज मरने का सुख उठाइए,
नये-नये अनुभव लीजिए
उन अनुभवों के आधार पर
एक मोटा सा ग्रंथ लिखकर छपवाइए,
अपनी और अपनों की चिंता को भूल ही जाइए।
लोग क्या कहेंगे या कह रहे हैं?
इस पर तो कभी ध्यान ही मत दीजिए,
और अपने अभियान में रम जाइए
दो चार चेले चपाटे पाल लीजिए
और मरने के अपने अनुभवों का जमकर प्रचार कराइए।
इतना भर करके एक बार तो देखिए
रोज-रोज मरने का आनंद उठाइए
खुलकर मुस्कराइए, खिलखिलाइए और नाम कमाइए।

सुधीर श्रीवास्तव

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