में
मैंने चुप रहना सीखा है,
हर बात पर बोलना ज़रूरी नहीं,
कुछ जवाब खामोशी में होते हैं,
जो सिर्फ समझने वालों के लिए होते हैं।
मेरी नर्मी को अगर तू कमजोरी समझे,
तो ये तेरी सोच की हार है,
मैं खामोश ज़रूर रहती हूँ,
पर मेरी दूरी सबसे बड़ी तलवार है।
भीड़ में खो जाना मेरी आदत नहीं,
मैं तो रौशनी से रास्ते बनाती हूँ,
जहाँ लोग थम जाते हैं सोचकर,
मैं वहाँ से भी मुस्कुरा के निकल जाती हूँ।
टूटी हूँ कई बार ज़िन्दगी की ठोकरों से,
पर हर बार कुछ और सीख आई,
कमज़ोर तो मैं कभी नहीं थी,
बस हर दर्द ने मुझे और भी मज़बूत बनाई।
मुझे किसी से बेहतर नहीं बनना,
ना ही किसी से आगे निकलना है,
मुझे तो बस हर दिन खुद से मिलकर,
अपनी सच्चाई और बहादुरी को जीना है।