कविता शीर्षक: "मिलन की वो पहली रात"
छू गया आज तेरा एहसास फिर से,
बिन कहे तू आ गया, मेरे पास फिर से।
हवा में घुली तेरी बातें हैं जैसे,
फिज़ाओं ने गा दिया कोई राग मधुर ऐसे।
तेरी आँखों की नमी, मेरा सुकून बन गई,
तेरी मुस्कान मेरे दिल की जुनून बन गई।
हम मिले थे जैसे पहली बार उस रोज़,
जैसे वक़्त भी ठहर गया हो, थम गए हों साज़।
तेरे हाथों की गर्माहट में छुपी कोई दुआ थी,
जो मिलकर आज, अधूरी हर तमन्ना पूरी हुई थी।
ना कोई वादा था, ना कोई कस्में भारी,
फिर भी दिल ने मान ली, बस तेरी ही ये सवारी।
तेरी बातें जैसे चाँदनी रातों की शीतल छाया,
हर लफ्ज़ तेरा दिल को बहलाए, मन को भाए।
मिलन का ये पल जैसे स्वर्ग से कोई तोहफा हो,
रब ने खुद आज हमको एक-दूजे के लिए लिखा हो।
अब ना कोई दूरी, ना कोई फ़ासले बाकी,
तू मेरा है, मैं तेरी — यही है सबसे सच्ची बाती।
हर जनम में बस यही एक दुआ मांगते रहेंगे,
तेरे साथ जीएंगे, तेरे साथ मरेंगे।