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## 🕯️ **कहानी का नाम: “सीलन”**
*(एक पुरानी हवेली... एक खोई औरत... और दीवारों में कैद सिसकियाँ)*
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### 🔸 **भाग 1: बंद हवेली की दस्तक**
काव्या, एक वास्तुशिल्पी (architect), को एक ऑफर मिला —
शहर के बाहर एक सौ साल पुरानी हवेली को नया रूप देना था।
मालिक का एक ही कहना था:
> “हवेली में कोई तोड़फोड़ न हो... बस साफ़ कर दो।”
> “नीचे तहखाने में मत जाना। वहाँ सब बंद है।”
काव्या हवेली पहुँची —
छतों से सीलन टपक रही थी, दीवारों में अजीब निशान थे —
जैसे **किसी ने अंदर से खरोंचा हो।**
पहली रात, दीवार से अचानक एक औरत की धीमी आवाज़ आई:
**"तू आई है मुझे बाहर निकालने?"**
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### 🔸 **भाग 2: दीवारों की दरार**
अगली सुबह, हवेली में रंग करवाते समय मजदूरों ने दीवार में एक हल्की दरार खोली।
उसमें से **राख जैसी गंध** और **एक टूटा ब्रेसलेट** मिला।
काव्या ने ब्रेसलेट को छुआ —
और तभी उसे तेज़ सरदर्द हुआ और आंखों के सामने **एक लड़की की चीख़** गूंजने लगी।
लड़की कहती है:
> “मुझे दीवारों में बंद कर दिया गया था...
> मैं अब भी यहीं हूँ... मैं अब भी... जिंदा हूँ।”
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### 🔸 **भाग 3: तहखाने का रहस्य**
काव्या को अब हवेली के नीचे के तहखाने में उतरने की जिद हो गई।
रात के समय, जब सब सो रहे थे, वो अकेली उस लोहे के दरवाज़े तक गई —
दरवाज़ा खुद-ब-खुद **खुल गया।**
अंदर सीढ़ियाँ थीं — गहरी और अंधेरी।
नीचे एक कमरा था — और उसमें पुराना लकड़ी का झूला, एक बच्चा गुड्डा, और दीवार पर लिखा था:
**“शगुफ़्ता, उम्र 19, क़ैद — 1912”**
तभी पीछे से किसी ने कान में फुसफुसाया:
**“अब तू मेरी जगह ले...”**
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### 🔸 **भाग 4: आत्मा की पहचान**
काव्या ने तहकीकात शुरू की।
पुराने अखबारों से पता चला — 1912 में इस हवेली के मालिक ने अपनी बेटी "शगुफ़्ता" को
**जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था**, क्योंकि वो एक नौकर से प्यार करती थी।
तब से हवेली खाली रही।
शगुफ़्ता की आत्मा अब **हर उस लड़की को पुकारती है**, जो उसकी उम्र की हो —
उसे दीवारों से **आज़ाद** करने के लिए।
लेकिन आज़ादी की कीमत है — **एक नया शरीर... एक नया बंदी।**
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### 🔸 **भाग 5: सीलन की साँस**
काव्या को महसूस हुआ कि वो अब धीरे-धीरे बदली जा रही है —
उसकी आंखें लाल होने लगी थीं, आवाज़ भारी, और दीवारों से *“शगुफ़्ता”* की परछाईं उसे बुला रही थी।
आखिरी रात, हवेली में एक ज़ोरदार चीख़ गूंजी।
और फिर... **सब चुप।**
अगले दिन, हवेली को नया नाम दिया गया —
**“काव्या विला”**
लेकिन जो भी आता, उसे दीवार से सीलन नहीं — **सिसकियाँ** सुनाई देतीं।
> “अब शगुफ़्ता आज़ाद है... और काव्या उसकी जगह पर बंद है
सुहेल अंसारी। सनम