English Quote in Poem by Pawan Shukla

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"गीता और कवि"

सूरज उगता है हर दिन,
बिना किसी इच्छा के।
गीता कहती है —
"कर्म कर, फल की कामना से रहित।"
कवि देखता है वही सूर्य,
और लिखता है —
“उगते सूरज में आशा की अग्नि है।”

पक्षी उड़ते हैं दिशा-हीन नहीं,
वे जानते हैं वसंत का मार्ग।
प्रकृति उन्हें कुछ नहीं सिखाती,
फिर भी वे चूकते नहीं।
गीता मौन में कहती है —
"स्वधर्म का अनुसरण करो।"
कवि वही उड़ान देख
पूछ बैठता है —
"क्या यह मुक्ति है, या आदत?"

वृक्ष छाँव देते हैं,
बिना पहचान पूछे।
गीता उसमें देखती है
निष्काम सेवा।
कवि उसकी जड़ों की ओर देखता है,
जो अंधकार में फैली हैं —
और लिखता है:
"जो दिखता नहीं, वही सबसे ज़्यादा थामे है।"

नदी बहती है,
कभी शांत, कभी विकराल।
गीता कहे:
"यह प्रवाह ही जीवन है — रुकना मृत्यु।"
कवि पूछे:
"क्या नदी को भी कभी थकान होती है?"

प्रकृति दोनों को सुनती है —
मुस्कराकर,
जैसे माँ दो बच्चों की बात सुन रही हो
— एक संन्यासी,
— एक कलाकार।

गीता का सत्य स्थिर है,
नदी की तरह प्रवाह में भी निश्चल।
कवि का सत्य बदलता है —
हर फूल, हर चाँदनी में नया रूप धरता।

और फिर भी —
दोनों जब चुप होते हैं,
प्रकृति कहती है:
"अब तुम एक ही भाषा बोल रहे-मौन.

-.पवन कुमार शुक्ल

English Poem by Pawan Shukla : 111980808
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