जो धुंधली पढ़ गयी वो याद है तू
जो कभी ना की वो फ़रियाद है तू
मुझे चाह तूने ये खता है तेरी
मैं चाहूं तुझे ये मर्जी है मेरी
मैं वो भंवरा हूँ जिसे कलियों का शौक नहीं,
तू वो गली है जिसमे दूर दूर तक कोई मोड़ नहीं
यूँ तो मैं भी बैठ जाता पास तेरे
पर मैं आशिक हूँ रुह का
और तू जिस्म से बढ़कर कुछ और नहीं