सुनो,
अगर मेरी आवाज तुम तक,
पहोचती हे,क्या?
तो, गौर से सूनो,
थक कर चूर हो जाते ये पैर,
झूम उठते हे यू ही,
उस अहेसास से की,
हम तो वो मंझील के,
मुसाफ़िर हे,
जो न तो कभी,
मीले हे,
और कोई आश,
कहाँ?
बस,जी उठते है,
पैर,
उस तड़प की,
तलाश,
मै.
- हीना रामकबीर हरीयाणी