#kavyotsav2
*जातपात की डोरी:*
ना गलती तुम्हारी थी ।
ना गलती उसमें मेरी थी ।
घोट दिया जिसने प्यार का गला,
वो जातपात की डोरी थी ।।
मैं काला सावला,
तुम चाँद सी गोरी थी।
मैं दसवी फेल,
तुम्हारी डाँक्टरेट की तैय्यारी थी ।।
फिर भी मैं उच्च था,
और तुम नीच थी ।
क्योंकी हमारे बीच,
जातपात की डोरी थी ।।
मैं था ठाकुर,
और तुम शुद्र थी ।
एक दुसरें से प्यार करने की,
हमें ना मंजुरी थी ।।
जो ना होनी चाहियें,
वही गुस्ताखी हो रही थी ।
हम दोनों का प्यार करना,
मानों जैसे कि एक चोरी थी ।।
घरवाले ना माने,
प्रेम पें जात भारी थी ।
हम भुल गये थे, बीच हमारे
जातपात की डोरी थी ।।
प्यार तो दोनों ने किया,
पर सजा सिर्फ उसें मिलनी थी ।
तुकडों में काट दिया उसे,
वो निचले जात की जों छोरी थी ।।
तरस भी न आया था,
समशेर घुमाते जालीम कों ।
प्रेम हि तो सबकुछ है,
फिर क्यों जात इतनी जरुरी थी ।।
जातपात के इस भवर ने,
जिंदगी मेरी तबाह कर दी थी ।
घोट दिया जिसने प्यार का गला,
वो जातपात की डोरी थी....
वो जातपात की डोरी थी....