मैंने जब देखा उसे पहली दफ़ा,
मुझे लगी
वो साधारण-सी एक लड़की।
अगली मर्तबा जब मिली,
उसके हाथों में थी कुल्हाड़ी
अन्याय की जड़ों पर
निर्भीक वार करती हुई।
फिर देखा एक दिन
उसको हाथों में करछी लिए
पर वो सिर्फ़ स्वादिष्ट भोजन नहीं पकाती
उसके मसालों में परंपरा थी, और
उसकी आँच पर अपने फैसलों की आज़ादी थी।
रसोई उसके लिए बंधन नहीं, एक प्रयोगशाला थी
जहाँ वो प्यार, प्रतिरोध और आत्मसम्मान
एक साथ गढ़ती थी।
कभी वो चूल्हे के पास खड़ी
पूरी दुनिया को संभाल रही होती,
तो कभी उसी धुएँ से
अपने सपनों की लकीरें खींचती।
कई बार जब देखा,
कभी वो नाज़ुक-सी किलकारी बन नई सृष्टि रचती,
कभी सुई–धागा थाम बिखरे रिश्तों को चुपचाप सीती।
कभी मशाल संग, अंधकार से टकराती
कभी झाड़ू उठाए,आंगन नहीं
सदियों की उपेक्षा साफ़ करती
उसके चेहरे पर था साहस,
आँखों में करुणा और जाग्रत चेतना
उसका दिमाग़ रसोई , रिश्ते और डर की सीमाओं में कैद नहीं था
वहाँ सवाल थे,तर्क थे,और
सच से नज़र मिलाने का पूरा हौसला भी था।
आख़िरी बार जब देखा,
उसके हाथों में थमी थी कलम
पर वो शब्द नहीं लिख रही थी,
वो उन पन्नों को आग लगा रही थी
जो उसे कमज़ोर बताते थे।
वो कलम एक ऐलान थी—
कि अब भविष्य उसके हाथों से रचा जाएगा।
उसका जेहन चार दीवारों तक सीमित नहीं था,
वहाँ पूरी कायनात थी और वह
उसके केंद्र में खड़ी मुस्कुरा रही थी।
ArUu ✍️