भीगी पलकें बादलो से न बरसने की बजह पूंछती है।
कब लोटेंगी बो बहारे पतझड़ से होके गुजरती हवाएं पूंछती है।
गुल से गुलिश्तां तक के सफर की जो दास्तां जमाने भर में मशहूर थी।
नजर आ जाए कोई पुराना नजारा तरसती निगाहों की है गुजरी बहारों से,
बो कब दोहराई जाएंगी कहानियां ये फिजा पूंछती है।
- khwahishh