यह शहर है बदनसीबों का,बदलना है जिसकी तस्वीर ।
सोचो,जरा सोचो! बतलाओ,कैसे बदलें इसकी तकदीर।
नयी शक्ति से ऊर्जस्वित हों,नयी युक्ति से गढ़े तदवीर।
अंध भक्ति में,लोभ लाभ हेतु,झूठ सच से बचें स्थवीर।
राह कांटों की,साथ सांपों की,हाथ धोखों की है राहगीर।
दम्भ पालें ,सांसें साधें,हिम्मत हो दृढ़ फिर बदलें तस्वीर।
- Mukteshwar Prasad Singh