दोहा मुक्तक
**************
चलो मृत्यु से हम करें, मिलकर दो-दो हाथ।
आपस में सब दीजिए, इक दूजे का साथ।
मुश्किल में मत डालिए, नाहक अपनी जान,
वरना सबका एक दिन, घायल होगा माथ।।
दिल्ली में विस्फोट से, दुनिया है हैरान।
इसके पीछे कौन है, सभी रहे हैं जान।
मोदी जी अब कीजिए, आर-पार इस बार,
नाम मिटाओ दुष्ट का, चाहे जो हो तान।।
वो भिखमंगा देश जो, बजा रहा है गाल।
शर्म हया उसको नहीं, भूखे मरते लाल।
युद्ध सिवा उसको नहीं, आता कोई काम,
गलती उसकी है नहीं, पका रहा जो दाल।।
हम तो हारे हैं नहीं, कैसे कहते आप।
सीट भले आई नहीं, मानें क्यों हम शाप।
अभी टला खतरा नहीं, लोकतंत्र से यार,
हम भी कहते गर्व से, हुआ चुनावी पाप।।
मोदी आँधी में उड़े, खर-पतवारी रंग।
सोच-सोच सब हो रहे, गप्पू पप्पू संग।
जनता ने ऐसा दिया, चला बिहारी दाँव,
जीते-हारे जो सभी, परिणामों से दंग।।
ये कैसा परिणाम है, टूट रहा परिवार।
कल तक जो थे दंभ में, बना रहे सरकार।
आज बिखरता देखिए, भटक रहे हैं लोग,
एक चुनावी फेर में, कहाँ गया दरबार।।
धर्म ध्वजा फहरा रहा, रामराज्य के नाम।
जन मानस है कह रहा, अब होगा सुखधाम।
अब अपने कर्तव्य का, करो सभी निर्वाह,
तभी करेंगे राम जी, सबके पूरण काम।।
आज स्वार्थ का दौर है, फैला चारों ओर।
अँधियारा भी किसी का, है चमकीला भोर।
सावधान जो है नहीं, वह खायेगा चोट,
बहुरुपिए ही कर रहे, सबसे ज्यादा शोर।।
समय-समय की बात है, देख लीजिए रंग।
मौन साध कर देखिए, नहीं होइए दंग।।
जीवन के इस सूत्र का, हुआ नहीं है शोध,
इसीलिए तो पड़ रहा, सर्व रंग में भंग।।
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश