यमराज कहता है - राम आयेंगे
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दीपोत्सव की छटा देख
यमलोक से मित्र यमराज मेरे पास आए,
दीपावली की बधाइयां शुभकामनाओं के साथ
मिठाई का डिब्बा पकड़ाकर कहने लगे -
प्रभु! सब कह रहे हैं कि 'राम आयेंगे'
अब आप बताओ- भला राम जी गए कहाँ थे?
जो फिर से आयेंगे,
अब तो उनका भव्य मंदिर भी बन गया है
सेवा-सत्कार, पूजन-आरती भी नियमित हो ही रहा है,
फिर उन्हें आने-जाने की जरूरत क्या है?
चलो मान भी लें, कि राम जी आयेंगे
तो भला इसमें इतना अजूबा क्या है?
मंदिर उनका, अयोध्या उनकी, लोग उनके
घर और राज्य भी उनका अपना।
वे जब चाहें कहीं भी आयें या जायें,
भला उन्हें रोकने वाला कौन है?
मैंने इशारे से उसे रोका और पूछा -
सच बता -तेरे कहने का मतलब क्या है?
यमराज अपनी रौ में कहने लगा
मेरे मतलब की चिंता छोड़िए और सिर्फ इतना बताइए
कि अब जब राम जी आते या जाते हैं
तो आप लोगों को इतना दर्द क्यों होता है?
बड़े खैरख्वाह हैं, तो फिर जाने ही क्यों दे रहे हैं?
अरे यार! उनका अपना जीवन, अपनी भावनाएं हैं,
ऊब जाते होंगे, तो घूमने चले जाते होंगे
इसी बहाने अपने राज्य की खोज खबर भी ले लेते होंगे।
क्या पता रामराज्य की आड़ में
आप लोग क्या-क्या गुल खिलाते होंगे?
बदनाम तो बेचारे श्री राम जी ही होंगे।
मैं तो कहता हूँ कि अच्छा है कि अब वे किसी पर भी
आँख मूँदकर भरोसा नहीं करते हैं,
क्योंकि आप लोग विश्वास के लायक ही नहीं है।
उसकी बात सुन मुझे गुस्सा आ गया
और मैं अकड़ में पूछ बैठा - तू ऐसा क्यों कह रहा है?
यमराज ने जवाब दिया - गलत क्या कह रहा हूँ?
मुझे भी खबर है कि आपके धरती लोक पर
आज क्या कुछ नहीं हो रहा है,
लूट खसोट, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, अत्याचार, हिंसा,
जाति-धर्म के नाम पर अराजकता
बहन-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़
और जाने क्या-क्या अपराध हो रहा है,
अब तो रिश्तों का खून भी आये दिन होने लगा है
मानवीय संवेदनाओं का अस्तित्व मिट रहा है,
स्वार्थ के झंडाबरदारों का विस्तार हो रहा है
इतना काफी है या और कुछ बताऊँ?
यमराज की बात सुन मेरा सिर शर्म से झुक गया
ज़बान पर ताला सा लग गया।
मुझे मौन देख यमराज बोला-
मित्र! प्रभु राम जी को अपना काम करने दीजिए,
उनके आने-जाने पर नजर मत रखिए,
कुछ करना है, तो अपने चाल चरित्र को
एकदम पाक-साफ रखिए,
राम जी की गरिमा का भी थोड़ा ख्याल रखिए,
रामराज्य के सपने को फिर से साकार करने में
ज्यादा नहीं तो अपना गिलहरी प्रयास करिए।
सच मानिए! राम जी कहीं नहीं गये थे
जो बार-बार आने-जाने में आप उलझे रहे हैं,
अपने भीतर के राम को देखने में तो शर्माते हैं
आखिर इतनी सीधी सी बात, समझ क्यों नहीं पाते हैं?
आप मेरे मित्र हैं, इसलिए इतना कर सकता हूँ,
आपकी अब तक की गलतियाँ, माफ़ करवा सकता हूँ
क्योंकि राम जी मेरी बात मान लेंगे,
मेरे अनुरोध पर आपको एक बार माफ तो कर ही देंगे,
यह और बात है कि इसके लिए
मुझे दंडित करने पर विचार भी जरुर करेंगे।
पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,
क्योंकि राम जी मुझे तो हमेशा की तरह
इस बार फिर भी माफ कर ही देंगे।
अब मैं आपसे विदा लेकर,
सीधे राम जी के चरणों में जाकर नतमस्तक होता हूँ
जन- मन और आपके साथ
अपने भी कल्याण, सुख-समृद्धि,
और खुशहाली की कामना करता हूँ,
देख लीजिए मैं भी तो राम जी की जय-जयकार करता हूँ,
आप सबके सुर में सुर मिलाता हूँ,
राम आयेंगे, आखिर यही बात तो मैं भी कहता हूँ।
सुधीर श्रीवास्तव