Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

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दीपोत्सव की सार्थकता
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दीपों के महापर्व दीपावली पर हर ओर प्रकाश फैला है,
दीपों, मोमबत्तियों, बिजली के झालरों,
रंग बिरंगे कलात्मक बल्बों से
फैली रोशनी से तमस मिटा है।
घर, आंगन, चौबारे, द्वारे
घर को मुंडेर, ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर, गुरुद्वारे सजे हैं,
सरकारी, गैर सरकारी भवन भी
सज-धजकर इठला रहे हैं।
चारों और बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री-पुरुष
फुलझडियां जलाये जा रहे हैं, पटाखे फोड़े जा रहे हैं।
अमीर हो या गरीब हर कोई
अपने सामर्थ्य के अनुसार हर कोई दीपावली मना रहा है,
रंगोलियाँ सजाई गई हैं,
घर, दुकान, प्रतिष्ठान में पूजा-पाठ का अनुष्ठान हो रहा है,
लक्ष्मी-गणेश को मनाने का उपक्रम हो रहा है।
तरह तरह की मिठाइयां खरीदी गई हैं
विभिन्न तरह के पकवान घर -घर में बने हैं।
अपने और अपनों के जीवन में उत्कर्ष के जतन हो रहे हैं
देश- दुनिया, समाज की खुशहाली की
सब अपने अपने ढंग से दुआ कर रहे हैं,
सीमा पर खड़े सैनिकों से खुद को जोड़ रहे हैं
एक दीप उनके नाम का भी जला रहें है,
शहीदों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि
उनकी याद में एक दीप जलाकर दे रहे हैं।
गरीब, बेबस, लाचारों के साथ दीपावली मना रहे है,
समरसता, मानवता का नया अध्याय लिख रहे हैं,
प्रभु राम को सिर्फ याद भर नहीं कर रहे हैं,
बल्कि उनके पदचिन्हों पर चलने का
यथा संभव प्रयास भी कर रहे हैं,
दीपों के इस महापर्व को सार्थक कर रहे हैं
सनातन संस्कृति को अमर कर रहे हैं,
महज एक दीप जलाकर भी मुस्कुरा रहे हैं।
अपने बड़ों से आशीर्वाद लें रहे हैं,
तो छोटों को प्यार दुलार कर आशीर्वाद दे रहें है,
एक- एक दीप जलता हुआ मुस्करा रहा है
दीपोत्सव जन-मन को नव संदेश दे रहा है।

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 112003355
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