यमराज मुख्यमंत्री बनेगा
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आज सुबह यमराज का फोन
दुआ- सलाम के बाद फ़रमाया
प्रभु मुझे भी चुनाव लड़ना है,
जीत-हार की चिंता छोड़
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का इम्तिहान लेना है।
मैंने कई पार्टियों से टिकट माँगा
लेकिन सबने ठेंगा दिखा दिया।
कारण उनके मापदंडों पर मैं खरा नहीं उतरा
जनबल की तो कोई कमी ही नहीं है,
मगर किसी दल के टिकट की खातिर
इसकी कोई अहमियत ही नहीं।
धनबल, बाहुबल का वफादार मैं कभी रहा नहीं
एक तो राजनीति में नौसिखिया, ऊपर से ईमानदार होना
मेरे टिकट की राह का राह का रोड़ा बन गया,
कौन समझाए आपके यहाँ के राजनीतिक दलों को,
किसी दल ने मुझे टिकट न देकर
यमलोक के बब्बर शेर को छेड़ दिया,
दुर्भाग्यवश मुझे अपना राजनीतिक दुश्मन बना लिया है।
अब मैं अपना राजनीतिक दल बनाऊँगा
अपने चेलों को हर सीट पर चुनाव लड़ाऊँगा
जीत के सारे हथकंडे अपनाऊँगा,
सारे राजनीतिक दलों को उनकी औकात दिखाऊँगा।
देखता हूँ! कौन मेरे दल को टक्कर देता है,
और मुझे मुख्यमंत्री बनने से रोक सकता है।
जरुरत पड़ी तो विधायकों को खरीद लूँगा
शराफत से बिक गये, तो ठीक है
वरना दूसरे हथकंडे भी अपनाने में संकोच नहीं करुँगा,
अपहरण कराकर यमलोक में बंधक बनाऊँगा,
उन्हें शपथ ही नहीं लेने दूँगा।
आप मेरे मित्र हो, इसलिए आपको बताता हूँ
आपसे किसी तरह का सहयोग भी नहीं चाहता हूँ
मेरे प्रचार की चिंता आप बिल्कुल न करें
बस मैं तो केवल आपका आशीर्वाद चाहता हूँ।
प्रचार के लिए दुष्ट आत्माएं मेरे आदेश के इंतजार में हैं,
जिनके अपने दल से टिकट कटे
वे सब मेरी पार्टी से टिकट पाने के लिए कतार में खड़े हैं।
बस! आप आदेश संग आशीर्वाद दे दो
तिजोरी भरने का जो मौका मिला है
उसका लाभ उठाने की बाखुशी सहमति दे दो।
संकोच छोड़ दो प्रभु! मुख्यमंत्री तो मैं ही बनूंगा
यह और बात है कि आपकी खड़ाऊं पहनकर ही
अपनी सरकार यमलोक से चलाऊँगा,
सारे तंत्र को यमलोक में ले जाने का प्रस्ताव
शपथ ग्रहण के साथ ही पास करवाऊँगा ।
जनता और प्रदेश की खातिर नये कानून बनाऊँगा,
हर तरह के अपराधियों को जेल नहीं
सीधे नरक में भिजवाऊँगा।
जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा का विवाद नहीं होने दूँगा
विवाद होने से पहले ही उसकी जड़ में मट्ठा डलवा दूँगा,
विरोधियों को ईडी, सीबीआई के चक्कर में फँसा दूँगा।
उन सबकी राजनीति का सत्यानाश कर दूँगा,
आपकी कसम किसी को खाने नहीं दूँगा
इसके लिए खुद भी नज़ीर बन इतिहास लिखूँगा।
वैसे तो राजनीति से मुझे मोह नहीं है
आपके लोक के धन से
यमलोक के विकास की तनिक सोच भी नहीं।
बस! मेरे चेले चाहते हैं, कि मैं इस बार मुख्यमंत्री बनूँ
और इसके लिए आपकी लोकतांत्रिक व्यवस्था है
कि पहले चुनाव लड़कर विधायक तो बनूँ।
अब आपके पास कोई और जुगाड़ हो तो
मैं बेवजह चुनाव ही क्यों लड़ूँ?
यमलोक का धन और अपना समय बर्बाद क्यों करूँ?
यमराज की बात सुन मुझे गुस्सा आ गया
तो मैंने भी कह दिया - तू बिल्कुल चुनाव लड़
जुगाड़ तो मैं भी कर सकता हूँ,
पर मुख्यमंत्री तुझे बनना है,
तो कुछ मेहनत तू भी तो कर।
मेरी बात सुन यमराज खुश हो कहने लगा -
बस प्रभु! अब फोन रखता हूँ,
चुनाव जीतने के बाद जब आपकी खड़ाऊँ लेने आऊँगा
तब अपने शपथ ग्रहण समारोह में
आपका आमंत्रण भी साथ लेकर आऊँगा।
क्योंकि आपकी उपस्थिति के बिना
मैं शपथ ही नहीं ले पाऊँगा,
क्योंकि मित्रता पर दाग लगाकर जी नहीं पाऊँगा,
यमराज का नाम एक बार बदनाम हो गया
तो जनता को भला मुँह कैसे दिखाऊँगा?
आप मेरे मित्र हो, का सुरीला गीत कैसे गाऊँगा?
सुधीर श्रीवास्तव