दीपोत्सव और यमराज की इच्छा
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जब से अयोध्याधाम में दीपोत्सव आयोजन की खबर
मेरे मित्र यमराज की लगी,
तबसे उनके आँखों की नींद है भगी।
बेचारे दीपोत्सव कार्यक्रम में जाना चाहते हैं,
राम की पैड़ी पर दीप जलाना चाहते हैं,
पर किसी को उनकी भावनाओं का ख्याल ही नहीं,
कोई भी उन्हें अनुमति दिलाने को तैयार ही नहीं।
बेचारे हैरान परेशान दर-बदर भटक रहे हैं
अनुमति के लिए हाथ जोड़कर
हर किसी से बड़ी शराफत से अनुरोध कर रहे हैं,
पर अफसोस कहीं से भी भाव ही नहीं पा रहे हैं।
थक-हार कर मेरे पास आये
एकदम मुरझाए हुए मुँह लटकाए,
हाथ जोड़ कहने लगे -प्रभ! मुझे माफ़ कीजिए
और मेरे अरमानों पर अब आप ही ध्यान दे दीजिए।
सोचा था कि इस बार आपको परेशान न करुँ?
अनुमति की खुशखबरी के साथ ही आपसे मिलूँ।
पर मैं तो बेवकूफ ठहरा, जो नाहक भटक रहा था
यह जानते हुए भी कि इस धरा पर
आपके सिवा मेरा कोई और शुभचिंतक नहीं है,
बस यही भूल मेरा सबसे बड़ा गुनाह बन गया।
भूल सुधार के साथ आपकी शरण में आया,
अब बस आप ही कुछ जुगाड़कर सकते हैं
ऐन-केन-प्रकारेण किसी तरह अनुमति दिलवा सकते हैं।
मैं भी अयोध्याधाम के भव्य दीपोत्सव का
इस बार साक्षात दीदार करना चाहता हूँ,
यमलोक के कल्याण हेतु भगवान राम के नाम
सौ- दो सौ दीप जलाना चाहता हूँ।
वैसे मैं भी कितना मूर्ख हूँ,जो आपको यह सब बताकर
नाहक अपना और आपका भी समय व्यर्थ कर रहा हूँ।
मेरा तो आपको सब पता रहता है
इसीलिए तो हम दोनों का आपस में इतना गहरा रिश्ता है।
मैंने लापरवाही से कहा -
तेरा प्रवचन खत्म हुआ हो तो अब मेरी भी सुन,
यमराज हाथ जोड़कर बोला - जी प्रभु!
कहिए मेरे लिए क्या आदेश है?
मैंने कहा - कुछ चाय-पानी पीना हो तो पी ले
और चुपचाप वापस निकल ले,
तू दीपोत्सव में जाएगा,
सौ- दो सौ नहीं हजार - दो हजार दीप
खुशी - खुशी दीप जलाने का
ससम्मान अवसर भी पाएगा।
इतना ही नहीं सरयू स्नान का लाभ भी उठाएगा
अब यह मत पूछना - यह सब कैसे होगा?
तू मेरा मित्र है- योगी जी के लिए इतना ही काफी है
तेरे लिए विशेष पास और अनुमति का आदेश कर देंगे,
मेरी नाक कटने से तो बचा ही लेंगे।
वैसे भी इतने भर के लिए कौन-सा उन्हें
रावण से युद्ध करने पड़ेंगे ।
तुझे पता नहीं है -अपने योगी जी बेचारे बड़े भोले हैं
राम जी के नाम पर कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं,
इसीलिए तो वो देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
पर तुझे भी इतना ध्यान रखना होगा
तुझे अकेले नहीं मेरे साथ ही चलना होगा,
दीपोत्सव का आनंद सिर्फ मेरी साया में ही लेना होगा।
कोई उदंडता, नियमों का उलंघन बर्दाश्त नहीं होगा,
वरना हम दोनों के वापसी का टिकट तत्काल कटेगा,
तेरे साथ मेरा भी सपना मिट्टी में मिल चुका होगा,
मेरी नाक कटेगी, तो योगी जी को भी दुख होगा।
तू योगी जी को नहीं जानता
वे कहने में कम करने में ज्यादा विश्वास करते हैं,
इसीलिए तो राम जी उन्हें इतना मानते हैं।
यमराज साष्टांग दंडवत हो कहने लगा
समझ गया प्रभु! अब चलता हूँ
यमलोक में यह खुशखबरी देता हूँ
और दीपोत्सव की अपनी तैयारी को अंतिम रूप देता हूँ,
उससे पहले आपका और योगी जी
दोनों का बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ,
मर्यादा पुरुषोत्तम की कृपा के लिए
उनको भी कोटि-कोटि नमन वंदन करता हूँ,
जय श्रीराम के उद्घोष के साथ यमलोक लौटता हूँ।
और फिर यथा समय वापस आकर आपसे मिलता हूँ
और फिर आपके साथ ही अयोध्याधाम चलकर
दीपोत्सव के दीदार संग दीप प्रज्जवलन करता हूँ
यमलोक की खुशहाली और राम कृपा के लिए
अपनी अर्जी सीधे हनुमान जी को देता हूँ,
अपने आपका जीवन धन्य करता हूँ।
सुधीर श्रीवास्तव