व्यंग्य - मातृभूमि
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मातृभूमि का मतलब क्या होता है?
जब आज यमराज ने बताया,
वो सुनकर मुझे जमकर पसीना आया।
आपको भी बताता हूँ,
जो कहकर उसने मेरा उपहास उड़ाया
मगर मित्र होने का फ़र्ज़ भी निभाया।
यमराज ने बिना लाग-लपेट के धमकाया
प्रभु! मातृभूमि क्या होती है, आप क्या जानो?
ग़लत कहूँ, तो मेरी बात मत मानो,
वैसे आप मानोगे नहीं, पता है मुझे ।
क्योंकि आप तो जिस मिट्टी में जन्मे, पले-बढ़े
जिसका अन्न खाया, पानी पिया
पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान पाया
और आज बड़ी -बड़ी बातें करते हो
उसी मातृभूमि की दुहाई भी देते हो।
अपनी उसी मातृभूमि का अपमान करते हो
और बेहयाई से अट्टहास भी करते हो
उसकी कोख को लजाते हुए तनिक नहीं शर्माते हो,
उसके दूध का कर्ज़ कुछ इस तरह चुकाते हो,
कि बेशर्म बन उसका आँचल तार-तार करते हो,
चंद रुपयों के लिए अपना ईमान तक बेंच देते हो।
अपनी उसी मातृभूमि का
सौदा करने में भी नहीं शर्माते हो,
अपनी मातृभूमि के दुश्मनों के सामने
कुत्तों सरीखे दुम हिलाते हो,
और खुद को मातृभूमि का बड़ा रक्षक बताते हो।
तुमसे अच्छे तो वो दुश्मन हैं
जो कम से कम अपना ईमान तो रखते हैं,
तुम्हारी तरह भेड़िए की खाल तो ओढ़कर नहीं घूमते हैं
जो करते हैं, उसे डंके की चोट पर करते हैं।
अच्छा है! कि आपकी मातृभूमि पर मैं नहीं जन्मा
वरना दस बीस हत्याओं का अपराध रोज करना पड़ता
आप जैसे न जाने कितनों की जान रोज लेना पड़ता,
शुक्र है प्रभु, कि मेरे यमलोक में ऐसा नहीं होता
वरना मैं तो घुट- घुटकर ही मर जाता
आत्माओं को मारने का वैसे भी कोई मतलब नहीं होता,
बस इसी बात का संतोष है,
कि मेरे यमलोक में ऐसा अपराध नहीं होता।
सौभाग्यशाली हूँ कि आप जैसों का बगलगीर नहीं हूँ,
पर दुःख भी होता है, कि आप मेरे मित्र हैं
जिसकी आत्मा का इतना मैला चित्र है।
मैंने यमराज के सामने हाथ जोड़कर सिर झुका लिया
ईश्वर का बहुत धन्यवाद किया
सचमुच यमराज ने मुझे और गिरने से बचा लिया,
मित्रता के आइने में मेरा असली रुप मुझे दिखा दिया
मातृभूमि के प्रति जिम्मेदारियों का मतलब समझा दिया।
सुधीर श्रीवास्तव