मैं और मेरे अह्सास
ओ बंजारे
साँसों का सफ़र पूरा करने ओ बंजारे भटकना छोड़ दे l
अपनी जान को खतरा न दे डोरी पर लटकना छोड़ दे ll
कब तक भटकता फिरेगा अपनी पहचान तो बना जा l
नया गाँव मिलते ही पुराने गाँव से छटकना छोड़ दे ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"