Hindi Quote in Poem by Shivam Kumar Pandey

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श्रीरामचरितमानस,भाग - 3
।। बालकाण्ड ।।


यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा ।
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः ॥
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां ।
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ॥




शब्दार्थ

यत्-माया- वश-वर्त्ति – जिसकी माया के वश में रहकर

विश्वम् अखिलम् – सम्पूर्ण जगत

ब्रह्म-आदि-देव-असुरा – ब्रह्मा आदि देवता और असुर भी

यत्-सत्त्वात् – जिसके अस्तित्व से

अमृषा एव भाति – सत्य सा प्रतीत होता है

सकलम् – समस्त, सब कुछ

रज्जौ यथा अहेः भ्रमः – जैसे रस्सी में साँप का भ्रम होता है

यत्-पाद-प्लवम् – जिनके चरणरूपी नाव

एकम् एव – एकमात्र

हि – निश्चय ही

भव-अम्भोधेः तितीर्षावताम् – संसार रूपी सागर को पार करना चाहने वालों के लिए

वन्दे अहम् – मैं प्रणाम करता हूँ

तम् अशेष-कारण-परम् – जो सबका कारण और कारणों से भी परे हैं

राम-आख्यम् ईशम् हरिम् – राम नाम से प्रसिद्ध परमेश्वर विष्णु (हरि)



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साधारण अर्थ

मैं भगवान श्रीराम को प्रणाम करता हूँ, जो सम्पूर्ण जगत के परम कारण हैं। जिनकी माया के अधीन होकर देवता, असुर और ब्रह्मा तक बंधे रहते हैं। जिनके अस्तित्व से यह जगत सत्य सा प्रतीत होता है, जैसे रस्सी में साँप का भ्रम होता है। जिनके चरण कमल ही संसार रूपी दु:सागर से पार पाने के लिए एकमात्र नौका हैं। वे ही सभी कारणों के परे, सर्वोच्च परमेश्वर श्रीहरि हैं, जो राम नाम से प्रसिद्ध हैं।


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नानापुराणनिगमागमसम्मतं
यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-
भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति ।।


शब्दार्थ

नाना – अनेक, भिन्न-भिन्न

पुराण – प्राचीन धार्मिक ग्रंथ

निगम – वेद

आगम – शास्त्र या अन्य मान्य ग्रंथ

सम्मतं – स्वीकार किया गया, मान्य

यद् – जो

रामायणे – रामायण में

निगदितं – कहा गया, वर्णित

क्वचित् – कहीं-कहीं

अन्यतः अपि – अन्य स्थानों पर भी

स्वान्तः सुखाय – अपने हृदय की प्रसन्नता के लिए

तुलसी – तुलसीदास

रघुनाथ – श्रीराम

गाथा – कथा, कीर्ति

भाषा – सरल भाषा

निबन्ध – ग्रंथ या रचना

अति मञ्जुलम् – अत्यन्त सुन्दर

आतनोति – विस्तार करता है, प्रस्तुत करता है



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साधारण अर्थ

तुलसीदासजी कहते हैं कि जो विषय अनेक पुराणों, वेदों और शास्त्रों में मान्य है और जो रामायण में तथा कहीं-कहीं अन्य ग्रंथों में भी वर्णित है, उसी विषय को वे अपने हृदय की प्रसन्नता के लिए, श्रीराम की कथा के रूप में, सरल भाषा में, अत्यन्त सुन्दर ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करते हैं।


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Hindi Poem by Shivam Kumar Pandey : 111996964
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