लम्हा-दर-लम्हा ज़िन्दगी बेज़ार हो रही है,
वज्ह एक ही पे दरियां सी ख़ार हो रही है |
बहते समंदर में जैसे तूफ़ान हो रही है,
तपती रेत में जैसे मिराज़ हो रही है |
देख अब तो क़ज़ा का डर नहीं मुझकों बाकी,
जर्रा जर्रा ज़िंन्दगी मज़ार हो रही है |
तुझकों न देखूं मैं नज़रों से अब हसरत ये भी,
रेज़ा रेज़ा ये हसरत भी कमाल हो रही है |
बालिश्त तमाम कोशिशें नाक़ाम उसे मनाने की,
ज़िंन्दगी गलत-फ़हमियों की कोई दिवार हो रही है |