महिमा वरनी न जाए----
हे अंजनी सूत बजरंगबली
महिमा वरनी न जाए।।
पवनपुत्र कहूँ या हनुमान
या रुद्रांश जाने कितने रूप
नाम तुम्हारे सुमिरत काल
समय बीतत जाए।।
बाल काल रवि ग्रास लियो
जग चहुओर भयो अंधियार।।
देव दनुज युग करे विचार
आश्चर्य चकित देखत बाल रूप
बलवान।।
करे याचना कृपा करो दया निधान
कष्ट निवारो रवि का हो युग
उजियार।।
मईया सीता वियोग में
व्यथित नारायण राम अवतार
सागर लांघो सुरसा तारो मच्छोद्री
तारण हार।।
आशीष मातु जानकी लंका जारो
भक्त विभीषण का घर नाही
कूदी पड़े सागर में मझधार।।
मातु जानकी सुधि आराध्य
राम बताए वानर कुल गौरव मान।।
लक्ष्मण मूर्क्षित वाण से
इंद्रजीत पुलकित अधिकाय
वैद्य सुषेण लंका से लायो।।
संजीवनी कि हिमालय से लाए
कालनेमि को तारो जाए।।
जीवन रक्षक संजीवनी लाएं
शेष हुए शेष अवतार।।
अहिरावण अभिमान में
चला देवन प्रभु बलिदान।।
ज्ञात नही हनुमान पुत्र
मकरध्वज ही अहिरावण
कीर्ति पताका द्वार।।
पाताल लोक के सिंघासन
राजा का करने गए उद्धार।।
देवी रूप धरे विध्वंस
कीए यज्ञ अहिरावण हे
हनुमान महिमा अपरंपार।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।