💔 "Kadar Kab Ki Khatam Ho Gayi..." 💔
तू पास होकर भी दूर सा रहता है,
हर बात में मुझे ही मजबूर सा कहता है।
तेरे लिए मैं क्या हूं, ये कभी जताया नहीं,
और मैंने हर दर्द तुझसे छुपाया भी सही।
मैं खामोश रही, तूने आदत समझ ली,
मैं सब सहती रही, तूने मजबूरी समझ ली।
तेरे एक लफ्ज़ के लिए तरस जाती हूं,
और तू रोज़ मेरे जज़्बातों को ठुकरा जाता है।
तेरी दुनिया में शायद मेरी कोई अहमियत नहीं,
मैं तुझमें सब देखूं, पर तुझमें मेरा कोई वजूद नहीं।
तेरे लफ़्ज़ों में प्यार की मिठास नहीं,
तेरी आँखों में मेरे लिए कोई प्यास नहीं।
मैंने अपना हर ख्वाब तुझ पर कुर्बान किया,
तेरे हर हुक्म को खुदा का फरमान लिया।
फिर भी तूने कभी ये महसूस न किया,
कि मैंने खुद को मिटा कर तुझे जिया।
तेरी बेरुखी अब आदत सी बन गई है,
तेरी खामोशी अब सज़ा सी लगने लगी है।
मैं तो बस तेरे साथ की तलबगार थी,
मगर तूने तो मेरी रूह तक से इनकार किया।
एक दिन आएगा जब मैं भी खामोश हो जाऊंगी,
तेरे हर सवाल का जवाब ख़ुद ब खुद बन जाऊंगी।
तब तुझे मेरी बातें याद आएंगी,
पर शायद तब मैं तेरी नहीं, सिर्फ अपनी रह जाऊंगी