💔 "वो लड़की जो हमेशा ठीक होने का नाटक करती है…"
(दिल को चीर देने वाली एक गहरी कविता)
वो लड़की...
जो हर सुबह आइने में खुद को देखती है,
मुस्कुराती है...
जैसे कह रही हो – "मैं ठीक हूँ, आज भी जिंदा हूँ..."
पर उसी आईने में छुपे आँसू कोई नहीं देखता,
क्योंकि वहाँ दर्द नहीं दिखता,
बस मेकअप की परतें होती हैं।
वो लड़की…
जो सबकी बात सुनती है,
सबका दर्द बाँट लेती है,
पर जब खुद अकेले होती है,
तो तकिए से लिपटकर रोती है,
जैसे खुद को माफ़ नहीं कर पा रही हो
कि वो इतनी “कमज़ोर” क्यों महसूस कर रही है।
कभी स्कूल में टॉप करने वाली लड़की,
आज खुद से हारती जा रही है।
जिसके सपनों में रंग थे,
आज उन्हीं रंगों से आँखें जल रही हैं।
वो लड़की जिसे "बहुत समझदार" कहा गया,
कभी किसी को तकलीफ़ ना हो, इसलिए
हर तकलीफ़ खुद में समेट ली।
जो हर बार "ना" कहना चाहती थी,
पर हर बार "हाँ, मैं संभाल लूँगी" कहकर
खुद को खोती रही।
उसे डर है —
कहीं किसी को लग न जाए कि वो "कमज़ोर" है,
इसलिए वो मुस्कुराती रही,
सबसे बोलती रही,
और खुद से दूर होती रही।
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🥀 कुछ दर्द शब्दों से भी नहीं निकलते…
उसकी डायरी में कुछ अधूरी कविताएँ हैं,
कुछ फाड़ दिए गए ख़त,
और कुछ सपने…
जिन्हें उसने दूसरों के लिए छोड़ दिया।
हर रात सोने से पहले वो खुद को एक वादा करती है —
"कल से खुद के लिए जिऊँगी..."
पर अगली सुबह फिर वही दुनिया,
वही ज़िम्मेदारियाँ,
वही अकेलापन…
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🌅 और अब एक धीमी सी उम्मीद…
पर एक दिन…
वो लड़की खुद को माफ़ कर पाएगी,
वो कह पाएगी — "मैं थकी हूँ, और मुझे थाम लो..."
और कोई उसे गले लगाकर कहेगा —
"अब तुम बस जी लो, दुनिया से नहीं, खुद से प्यार करो…"