शीर्षक : परिचित
दो जिस्म मगर
इक जान थे वो,
इक दूजे के स्वाभिमान
थे वो।
ना जाने कैसे
बंधन टूटा,
जो पड़ा गाठ
फिर ना सुलझा।
दोनों ने नाता तोड़ लिया।
इक दूजे से मुंह मोड़ लिया।
ना जाने किस की
नज़र लगी,
मानो जैसे
कोई बिजली गिरी।
जब तक होता ये एहसास ।
तब तक छुट चुका था साथ।।