दुनिया का नज़रिया तो देखो ! यदि कोई 40 साल का हो जाता है तो कहते हैं की बूढ़ा हो गया है और यदि कोई 40 की उम्र में मार जाता है तो कहते हैं कि जवान ही चला गया ।बेचारा इंसान दुनिया की भलाई करते - करते बुढ़ापे की दहलीज़ पर कदम रख देता है पर कभी इस दुनिया ने उसकी अच्छाई की कद्र नहीं की और यही दुनिया उसके मरने पर कहती है - चला गया, आदमी तो अच्छा था । इसका सीधा - सा मतलब है कि अच्छा करने से अच्छाई कभी नहीं मिलती बल्कि अच्छाई पाने के लिए मरना पड़ता है । ये दुनिया का दस्तूर है - जब ज़िंदा हो तो मनोबल तोड़ दो और जब मर जाओ तो तारीफ़ों के पुल बाँध दो ।
इसलिए दुनिया की बातों को मिक्सी में पीसकर घोटकर पी जाओ । दुनिया की स्पीड से नहीं बल्कि अपनी स्पीड से, अपनी क्षमता के अनुसार भागो क्योंकि दुनिया केवल कहने के लिए है ।
जो दुनिया आज आपकी असफलता में ताने मारती है वही दुनिया कल आपकी सफलता पर तालियाँ बजाने के लिए खड़ी होगी ।