"आओ बैठें"
आओ बैठें—
थोड़ी देर
बिना कहे कुछ,
सिर्फ़ साँसों की आवाज़ में
बातें ढूँढें।
कुर्सियाँ वही हैं,
जिन पर पहले भी बैठे थे,
पर पीठ सीधी नहीं होती अब,
शायद दिल थोड़ा झुक गया है।
फोन साइलेंट रखो,
न दुनिया रुकेगी,
न ख़बरें थमेंगी।
पर यह पल—
हमारी नज़रों में
एक पूरी उम्र जैसा हो सकता है।
आओ बैठें—
जैसे पुराने पेड़ के नीचे
थकी हुई छाया बैठती है।
न हिसाब करें कल का,
न डरें आने वाले ऋतुओं से।
बस अभी—
तुम और मैं,
थोड़ी चुप्पी,
थोड़ा अपनापन
और एक अदृश्य समझौता
कि हम साथ हैं,
क्योंकि हम साथ होना चाहते हैं।
-पवन कुमार शुक्ल