कि:
हज़ार राहें, मुड़के देखी कहीं से कोई सदा ना आई
ल:
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई ...
कि:
जहाँ से तुम मोड़ मुड़ गये थे वो मोड़ अब भी वही पड़े हैं
ल:
हम अपने पैरों में जाने कितने भंवर लपेटे हुए खड़े हैं
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई ...
कि:
कहीं किसी रोज़ यूं भी होता हमारी हालत तुम्हारी होती
ल:
जो रात हमने गुज़ारी मरके वो रात तुमने गुज़ारी होतीं
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई...
कि:
उन्हें ये ज़िद थी के हम बुलाते हमें ये उम्मीद वो पुकारें
ल:
है नाम होंठों में अब भी लेकिन आवाज़ में पड़ गई दरारें
कि:
हज़ार राहें, मुड़के देखी कहीं से कोई सदा ना आई
ल:
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई...
- गुलज़ार