क्या मैं खुद को जानता हूँ?
या इस प्रश्न का उत्तर
स्वयं ही एक भ्रम है,
एक भ्रम की परिभाषा।
दर्पण में जब देखता हूँ,
क्या वह मेरा प्रतिबिंब है?
या एक अनजानी छवि,
जिसे समय ने आकार दिया है।
सवाल क्यों है?
क्या प्रश्नों की गहराई में
मेरे अस्तित्व का बोध छुपा है?
या यह केवल शब्दों का खेल है,
मुझे उलझाने वाला।
मैं कौन हूँ,
शरीर, मन, आत्मा?
या यह सब एक साथ,
किसी विराट सत्य का छोटा हिस्सा।
जीवन की धारा में,
जब समय बहता है,
कहीं मैं भी बह रहा हूँ,
जैसे पत्ते पानी पर।
क्या जानना आवश्यक है,
या यह यात्रा ही सत्य है?
हर कदम, हर मोड़,
मेरे होने का प्रमाण।