बिल्कुल, नकली गुरुओं और कठमुल्लों से सावधान रहने पर हास्य-व्यंग्य कविता प्रस्तुत है:
नकली गुरु और कठमुल्ले
गाँव-शहर में गूंजे धुन, नकली गुरुओं का बड़ा जमावड़ा,
फर्क न पहचाना, सच और झूठ में, सबको हुआ बड़का धोखा।
गुरुजी के प्रवचन, मीठे जामुन, पर असलियत कड़वी खीर,
ज्यों ही सबको लगे एहसास, सबने अपना माथा पीट लिया ज़ोर-ज़ोर से, रीर-रीर।
कठमुल्ला भी क्या कम, अपनी बातों का चलता है धंधा,
कभी लड्डू, कभी मिठाई, कभी बनवा दे नई गढ़िया।
धर्म के नाम पर बेचते हैं ये रंग-बिरंगे सपने,
पर असलियत की दुनिया में ये बस हैं चमकीले झूठ के घड़े।
गुरुजी के आश्रम में, सोना-चाँदी का मेला,
पर साधारण जनते, रात-दिन खींचते मेहनत का गेला।
गुरुजी की कथाओं में, न जानें कितने रस,
पर सच पूछो तो, सब कुछ है धोखे का खेल, और बेवकूफी का जस।
कठमुल्ले की बातें, आग में घी का काम करें,
लोगों को उलझा दें, और खुद ताज पहनें।
धर्म के नाम पर, बाँटे ये नफरत की चिंगारी,
लोगों को लड़वा दें, और खुद खाएं मलाई सारी।
गुरुजी की गाड़ी बड़ी, भक्तों की जिंदगी छोटी,
गुरुजी के भवन मंहगे, पर भक्तों की टूटी खाटी।
कठमुल्ले की टोपी ऊँची, पर दिल बिलकुल खाली,
धर्म के नाम पर खेलें ये खेल, और मासूम जनता जाए ठाली।
सावधान रहो, दोस्तों, इन नकली गुरुओं से,
जो सोना समझ कर बेचें रेत, और आप नाहक ही लड़े कुबेर से।
ध्यान लगाओ, असली सद्गुरुओं पर, जो सिखाएं सच्ची राह,
जिनकी बातें हों सच्ची, और जिनमें न हो कोई खोट, कोई बाह।
कठमुल्लों के जाल से भी रहो दूर,
जो नफरत की खेती करें, और बांटें झूठा गुर।
सच्चे धार्मिक गुरुओं को पाओ, जो प्रेम और शांति फैलाएं,
और जीवन की सच्ची राह पर हमें चलाएं।
**तो चलो उठें, जागें, और समझें इस खेल को,
सावधान रहें नकली गुरुओं और कठमुल्लों के झमेले से, और पाएं सच्ची राह, सच्चे मेल से।**
आशा है आपको यह हास्य-व्यंग्य कविता पसंद आएगी! 😊📜✨