वो अक्सर मुझसे कहता है
अब जीने में वो बात नही
सांसे तो चलती है लेकिन
जीवन में वो मधुमास नही
उसकी तडपन को सुनकर मैं
नैनों में जल भर लेती हूँ
कभी निरखती उसको हूँ
हाँ हूं में कुछ कह देती हूँ
वो चला गया जिन राहों से
मैं वही खडी उसे तकती हूँ
सब समझ कर भी यूँ अनजान बनी
उसकी खातिर जीती हूँ
अपने गीतों में अक्सर ही
आंखों के आंसू लिखती हूँ
बनी कृष्ण की मीरा सी
मैं उसकी आँखे पढती हूँ
उसको लफ्जों में अक्सर ही
एक सूनापन सा लगता है
वो अक्सर मुझसे कहते है
मैं हर पर उसको सुनती हूँ। ।
मीरा सिंह