उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 31 की
कथानक : कविता के स्थानान्तरण पर विदा होते समय भीतर से उसके हृदय में एक तड़प थी। रमन और उसके बीच जो दीवार खड़ी हो गई थी, वह स्थानान्तरण से और भी मजबूत होनी थी।
रमन की पाठशाला बंद हो गई क्योंकि किसी उसके अपने ने ही पाठशाला में शराब का कार्टून रख दिया था। आखिर वह कौन था? इसका पता रमन के साथियों ने लगा लिया और यह भी उससे लिखवा लिया कि किस तरह केहर सिंह ने उसे 500 रुपये का लालच देकर यह काम कराया था। यद्यपि जिसने यह किया, उसके लिए अब बहुत शर्मिंदा था। बहरहाल, छांगू राम नाम के उस आदमी की लिखित मूल प्रति वकील को सुपुर्द कर दी गई।
उपन्यासकार ने अब दोषियों की परतें खोलने का काम आरम्भ कर दिया है अत: कथानक में रोचकता बढ़ती जा रही है।
इस अपेक्षाकृत छोटे अंक में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं- 1.कविता का स्थानान्तरण होने से उसका कार्यमुक्त होना तथा 2.पाठशाला में शराब की बोतलों के पाए जाने के कांड का भंडाफोड़ होना।
कार्यमुक्त होने के बाद कविता के मन में उमड़े विचार यहाँ द्रष्टव्य हैं:
रमन की बेरुखी उसे और भी परेशान किए जा रही थी। आखिर ऐसा कब तक चलेगा? उसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था। मेरी और उसकी स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है। मुझे मेरे पद की गरिमा बनाए रखने का बंधन है, परंतु वह तो बंधनमुक्त है। मैं तो उससे मिलने राधोपुर नहीं जा सकती, परन्तु उसे यहाँ पर टोकने वाला कोई नहीं है। एक स्त्री होने के नाते मेरी कुछ मजबूरियाँ हैं, परन्तु उस पर तो कोई ऐसी विवशता नहीं है। कितना अच्छा होता, आज वह मेरे बगल में या सामने बैठकर इन पलों की तन्हाई में मेरे साथ होता। आदमी कितना भी कठोर हो, स्त्री का हृदय कोमल होता है। वह कठोरता में भी उस कोने को तलाशती है, जिसमें प्यार की जरा सी भी आहट हो। कविता आज उसी आहट को महसूस करना चाहती थी, एक मृगतृष्णा की तरह। (पृष्ठ 480-81)
लेखक ने यहाँ कविता के मन को टटोल कर उसके मन की परतें खोली हैं। आज दो व्यक्ति मन के साथ स्थान से भी दूर हो गए हैं लेकिन कविता के मन के उद्गार उसके मन को प्रतिबिंबित कर रहे हैं। देखना यह है कि इस कपल का मिलन अब कहाँ होता है।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
1.1. 2025
5:30 a.m.