लफ़्ज़ों में बेरुख़ी दिल में
मलाल रहने दो
हमसे मुत्तालिक वो तल्ख़
ख़्याल रहने दो
बांकी जो बचे हैं वो
दिन भी गुजर जाएँगे
उलझे हुए सब वक्त के हैं
सवाल रहने दो
बेतक़ल्लुफ है आज
हमसे हरेक ग़म तेरा
अब किस बात पे उठे
नए बवाल रहने दो
कुछ भी नहीं है बदला
वक्त के निज़ाम का
फिर तुम ही क्यों बदलो
बहरहाल रहने दो
अब उम्र ही कितनी बची है
कैदे हयात की
रंजिशें गर दिल में है तो
इस साल रहने दो
कुछ दिन इन आँखों में
समन्दर बसर पाए
कुछ दिन इन जख़्मों को
खुशहाल रहने दो
यूँ ही उदास होके
गुमसुम से मत खड़े रहो
आईने के मुकाबिल
जलवे जमाल रहने दो..!!