सुनो न..
सुन रहे हो मुझे?
न जाने क्यूं कभी कभी
तुम बहुत याद आते हो,
मेरा यकीन करो..
मैं बस खुशियों में याद करना चाहती हूं तुम्हे ,
मगर न चाहते हुए भी
तुम मुझे दर्द में ,
मेरी तकलीफ़ में बहुत याद आते हो,
मैंने हमेशा ही तुम्हे ,
अपनी ताकत बनाना चाहा है मगर,
न जाने क्यूं हर बार ,
तुम मेरी कमजोरी बन जाते हो,
मै जिन आंसुओ को थाम कर रख लेती हूं
अपनी पलकों के किनारों पर ,
वो तुझे स्मरण कर अपने आप गालों पर लुढ़क आते हैं,
व्यथित होकर मन चाहता है कि
मै गले लगकर तुझसे कहूं हर पीड़ा अपनी,
मगर फिर तुझे न पाकर ,
मन अथाह वेदनाओं से घिर जाता है,
तुम्हारा न होना कितना तकलीफ देह है,
ये बयां नहीं कर पाऊंगी कभी,
क्योंकि मेरे पास वो शब्द ही नही,
जो मेरे इस दर्द की शिद्दत को नाप सके,
जो बता सके कि तुम्हारा न होना ,
मेरे लिए भी मृत्यु तुल्य ही है,
जैसे सांसे लेते हुए भी,
जिंदा न रहना...
कैसी व्यथा है ये जिंदगी की भी,... कि
किसी को भूलने के लिए ,
पहले वजूद अपना मिटाना पड़ता है..!
(ये उनके लिए जिनकी जिंदगी से कोई उस जहां में गया है , जहां से लौटकर कोई नही आता...)🙂
ख़ैर....