सोचती हु......
अगर दर्द एक इंसान होता तो कैसा दिखता,
हुबहू उसके जैसा दिखता,
भीड़ में चेहरा उसका ऐसा होता हे
जैसे रोशनि छीन जाने के बाद चांद
रात में खयाल उसके ऐसे होते हे
जैसे तकिया और कम्बल
खुद ढूंढ रहे हो नींद
भरी महफिल में जगमगाती लाइट्स में
जैसे एक बल्ब पड़ा हो बंद
वसंत के लहराते पवन के जोको में जैसे
खड़ा कोई एक वृक्ष स्वच्छंद
दुनिया की कई रुह से जुड़ी कहानियों में जैसे
एक अधूरा प्रेम संबंध ।