मैं और मेरे अह्सास

वक़्त के हसीन सितम को सहते चले गए l
घड़ी की रफ़्तार के साथ बहते चले गए ll

मंज़िल की तलाश में निकल पड़े हैं और l
रास्तों के संग आगे ही बढ़ते चले गए ll

फिसलती जा रहीं हैं ज़िंन्दगी तेजी से l
ओ लहरों की धार पर रहते चले गए ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111928655

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