एक लड़की की यादें
ख्वाहिशों का क्या कहें वह तो चांद पानी की भी थी ,
बर्फ से ढके घने बादलों में इस तरह खो जाने की भी थी ।
आसमान से मिलना ज़मीं पर एक कागज की नाव बनाने जैसा था।
बर्फ से ढके उस बर्फीले चांद पर बैठकर आइसक्रीम खाने जैसा था ।
बचपन के सपनों का भी एक अलग ही अंदाज हुआ करता था
जब चंदा मामा को बुलाने का अपना अनोखा अंदाज हुआ करता था ।
आसमान से परी उतरेगी जादू होगा कुदरत का करिश्मा सा लगता था,
तारों का टिमटिमाना बादलों में मोमबत्ती जलाने जैसा लगता था ।
चौकीदार के डंडों की आवाज किसी सजा जैसा लगता था,
ख्वाहिशों का क्या कहें वह तो चांद पाने की भी थी ,जो
बर्फ से ढके घने बादलों में झूला डालने जैसा था
राजा रानी के किस्से अक्सर किताबों में पढ़ती थी
सुंदर-सुंदर परियां सपनों में मिलती थी ,
अक्सर अरमान पूरे करने की आस लगाए रहती थी
आसमान के तारों को गिरने का ख्याल तभी आता था
जब आंगन में बिछी उस खाट पर से आसमान को ताकना पड़ता था ,
बादलों से टपकती बारिश की बूंदे चांदी के मोती जैसी ही लगती थी
सपनों के आसमान की ऊंचाई जब पतंग की डोर से नापनी पड़ती थी
वह अल्हड़ बचपन चंचल प्यारा सा जिसमें खुशियों का पिटारा बंधा रहता था
अब वह यादें एक मीठी सी मिठाई सी लगती है।
मैं अपने दिल के कोने में उन यादों को संजोए बैठी हूं
कभी-कभी अकेले में उसे दोबारा चखना चाहती हूं
इनका कोमल स्पर्श निस्वार्थ प्रेम और विश्वास जैसा लगता है।
डॉ . साक्षी रोटे