जब जी चाहा ठुकरा दिया,
जब जी चाहा बुला लिया,
सरलता का कोई मोल नहीं रह गया!
जब जी चाहा ताने दिए,
जब जी चाहा फुसला लिया,
हमारा दिल है कि कोई बच्चा समझे?
स्वमान और सम्मान दोनों रखतें हैं,
"भूलो और आगे बढ़ो" की सोच क्या पाली,
आप हमें खामख्वाह समझे?
प्यार हमारा कीमत का मोहताज तो नहीं,
क्या पाया क्या खोया हिसाब न रखा कहीं,
आप दिली एहसासों को अब तक न समझे।
पहाड़ सी कोई या आसमान हो गई हो,
हर मुश्किलें साथ झेली है,
डांट फटकार आपकी सर चढ़ाई तो,
आप हमें तलबगार समझे?
हर हार को दिल से लगाया
जितमें जश्न मनाया।
"चलो,ठीक है, कभी तो सही हो जाएगा,"
यह सोच को आप हमारी मजबूरी समझें?
नहीं चाहिए अब कुछ और,
करके देख लिया ख़ुद पे गौर।
बस…बस..अब बस..
रहना है ख़ुद के साथ जुड़ के,
और कोई क्यों? हम भी तो,
अपना सम्मान ख़ुद समझे!
कुंतल भट्ट "काम्या"
सूरत