चांद की नवल धवल दूध जैसी रश्मियां,
नभ में बिखेर रही अमृत घुली शक्तियां।
धरती पर नाच उठी जीव जन्तु पत्तियां,
रात शरद चांद की पक्षियों में मस्तियां।
रात भर जगे जगे नहा रहे किरणों में,
सूर्य आज ठहर जा देख चांद व्योम में।
चकोर की खोज को आज खत्म होने दे,
छिपे हुए चकवा को चांदनी में ढूंढने दे।
शरद की पूर्णिमा बरसा रही प्रेम प्रीत,
समेट लो अंजलि में नेह प्रेम बंटने दे।
#मुक्तेश्वर मुकेश
@शरद पूर्णिमा