एक रोज़ की बात है
जब वो शरमाया करते थे,
वादे निभाया करते थे,
पर कुछ बात छुपाया करते थे।
क्या बात थी वो हर बार हसी छुपा लेती थी,
वो मुस्कुराहट सब कुछ भुलाया करती थी।
हर बार बात टाला करते थे,
पूछते थे तो वो अकड़ दिखाया करते थे।
जब कुछ दिन गुजरे कुछ अकेली राते,
सुबह भागे, शाम को रात से काटे।
लोगो से पूछा, लोगो को समझा,
शब्दो को टटोला, लहेजे को जानाl
जानके हस पड़े नादानियों पे,
जिनपे जान लगाया करते थे,
वो ढोंग रचाया करते थे।
-નિ શબ્દ ચિંતન