Hindi Quote in Poem by MUNI PRASAR MISHRA

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ज़िंदगी से तन्हा होना मंजूर है मुझे
पर किसी गैर से अपराध नहीं होता।
माना लोगों से रुसवा होकर गुजरते नही दिन
लेकिन खुदा की हर बात मंजूर है मुझे ।
जिस्म से रूह गर नाराज़ भी हो जाए
माना कभी मुझसे अपराध भी हो जाय,
सांसों के छूट जाने से निःस्वास भी हो जाए
पर तुझसे दूर होना न मंजूर है मुझे।।
तेरी हकीकत तेरी सराफत
तेरी मोहब्बत तेरी नज़ाकत
तेरी तब्बसूम तेरी इलाही
दरिया दिली तमन्ना माही
खुशी से झूमू तेरी चहक में
तेरे संग मिटना मंजूर है मुझे।।।
सबनम पर तेरा यू मुस्कुराना
धीरे से होठों का यू हिलाना
साथी को लेकर खुद को बचाना
तेरी उलझन का मुझको आना
तेरी फितरत मंजूर है मुझे।।
लड़ना तेरा मुझे रुलाना
फस कर तेरा मुझे फसाना
डर कर धीरे से मुझे बुलाना
मेरे पप्पू पन पे तेरा मुस्कुराना
सारी फजीहत सारी रफिकत
यू ज़िंदगी भर मंजूर है मुझे।।
दिल को छू कर दूर जाना
याद आना भूल जाना
यादों की गरमाहट में जलाना
फिर सिहलाना यू नखरे दिखाना
किसी गैर पर मर मिट जाना
गुस्से में हाऊ तेरा खिल खिलाना
तेरी हरकत मंजूर है मुझे।।
सांझ ढले पर याद आना
सारी रात सिसकियां बहाना
थक हार कर मेरा यू सो जाना
सुबह उठते ही होना रवाना
भाग दौड़ में जिंदगी बिताना
कभी भी न मेरा फुरसत पाना
तेरे सारे किस्से मंजूर है मुझे।।
जिदगी से तन्हा होना मंजूर है मुझे ।।

Hindi Poem by MUNI PRASAR MISHRA : 111907781
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