Hindi Quote in Poem by MUNI PRASAR MISHRA

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फलक का रास्ता था मैं
इरादे नेक थे मेरे।
तेरी मंजिल कहीं थी गर
मगर आसमां को थे घेरे।
समा जाती रही तन्हायिया
के सब्र में कुफरु ।
मिजाज़ फिर भी कभी गर्म न हुए
तुझको लेके मेरे।
सब्र की कस्ती कब डूबती जानिब
अगर आसमां में हो
तेरे अपने ही लुटेरे।
कहीं पर आप अपने रुख पे पर्दा डालते आए
कहीं पर छिप छिपा करआप भागते आए
कहीं ऐसा हुआ की आपने नज़रे झुका लीं थीं
कही पर सर्द हवाओं ने मौसम थे खुद बनाए ।
कहीं रगीन सितारों को लेकर खुश हुए थे आप
कही दागी सितारों ने थे खूब दाग लगाए।
तिलिस्मी जिस्म से चकराए कई मेहमा पुराने थे
ताकीद जिसकी खतीर थे हांथ बढ़ाए।
नाफरमानी की मोहलत नही देती है दुनियां
कई रुस्तम ने क्यू न इसको रंगीन बनाए
थी लाचार जब कुबूल की ये बात को उसने
तेरी हकीकत से खुसामद सहर बसाए
रोज आना रोज जाना
फितरत नहीं मेरी
तू जिसको भी चाहे
उसे ही अपना बनाए।
मुर्शिद तेरे चेहरे को देखकर लगा
खुदा ने क्या क्या नमूने बनाए
गद्दारी भरी खोल में जिस
लेबल लगाया ख़ास
दिखने में लाज़वाब
मासूमियत भरे चेहरे को बनाए।
है खुदा की करिश्मा
हम सवाल क्या करें
गर चेहरे बनाए
तो गहरी नजरे भी बनाए।।



मुनि पराशर मिश्र " नम्र "तरुण कि कलम से _____________

Hindi Poem by MUNI PRASAR MISHRA : 111902286
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