फूल
फूल तुम्हें दिया था कभी,
जीवन की सारी मुस्कानों के साथ,
पर तुमने तो बदल दिया
इन मुस्कानों को पल भर में ही,
क्यों कांटो के साथ?
तुम तो ठहरी ही रहीं सदा एक ही जगह,
झील के पानी की तरह,
दरिया बनती तो घुल जाते मीलों तक दोनों
अपनी रूहों के साथ।
उड़ने वाले को मालूम होता है,
नहीं है जगह आसमान में बैठने की,
फिर तुमने क्यों की इतनी ऊंचाई तक जाकर,
न कभी लौटने की बात?
तब से आ गया हूँ इसकदर दूर,
जब तुमने छोड़ा था पकड़कर मेरा हाथ,
अब न तो रिवाज है, न चलन है, न रस्में दुनिया है और ना ही वह बाहें,
कैसे थाम लें तुम्हें,
अपने हाथों में लेके तुम्हारा हाथ?
खुश रहो तुम जहां भी हो
ये दुआएं है मेरी,
हूं मैं अकेला बस अपनी सारी खताओं के साथ।
- Sharovan.