Hindi Quote in Poem by Smriti Singh

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विषय: गाँव के वो दिन

अपनों से ही मुँह मोड़ कर सभी रिश्तों को ये भूल जाते है
आज कल अपने गाओं को छोड़ कर सभी शहर चले जाते है

मिट्टी पर पड़े बारिश के बूँदों की भीनी ख़ुशबू आज भी याद है मुझे
मेरे गाँव की वो खेत, वो हरियाली, वो गलियारे सभी याद है मुझे

चाह नहीं है शहरों के चमकीले रोशनदान, नौकर, गाड़ी और महलों का आशियाना
हमे तो आज भी भा जाता है टूटे हुए खटिये पे सो कर चाँद-तारों को निहारते जाना

गाँव के लोगों की मासूमियत, उनकी बातें सब सच्चे लगते है
इस शोर भरे शहर से ज़्यादा अब मुझे गाँव अच्छे लगते है

आज भी भाता है वो जुगनुओं का टिमटिमाना और वो दरियों पे नहाना
भाग जाती हूँ मैं हर बार शहर छोड़ कर गाँव के पगडंडियों की ओर, करके कुछ बहाना

चाह नहीं है शहरों के शोर में बसे, अकेलापन में क़ैद, अपनों से ही मिलो दूर हो जाना
हमे तो आज भी भा जाता है गाँव के आँगन में सभी के साथ हंसी-ठिठोली कर जाना

वो मुर्ग़े की बांग, वो मंदिर की घंटी, वो पंछियों का चहचहाना
ना जाने क्यों, पर आज भी हमे ये सब लगता है बड़ा ही सुहाना

घर-परिवार और संस्कार से भरा-पूरा है हमारे गाँव का संसार
अपनों के लिए, सपनों के लिए, शहर के ऐशों-आराम भी अब है निसार

वो पारियों के क़िस्से, वो मिट्टी के घरौंदे, वो नानी का दुलार, वो दादी के हाथ का स्वाद, सभी अच्छा लगता है
क्या कहूँ दोस्तों! गाँव से दूर होते हुए भी, ना जाने क्यों, पर ये गाँव फिर भी अच्छा लगता है

- स्मृति सिंह

Hindi Poem by Smriti Singh : 111879273
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