आज फिर से चल पड़ी हूँ उस रस्ते पर मैं
ज़िंदगी को ढूँढने निकली हूँ मुसाफ़िर बन मैं
ना सफ़र की ख़ुशी है, ना मंज़िल का मोह
ना किसी का साथ है, ना कोई उम्मीद का जोह
अपना घर-आँगन भी अब पीछे छोड़ दिया है
अपनों से भी अब सारा नाता हमने तोड़ दिया है
निकल पड़ी हूँ मैं, पर ना जाने अब आगे क्या होगा
इस राह पर, अगर कोई हमारा राह भी देखे, तो क्या होगा
सफ़र नयी थी, रस्ता नया था, और थी मन में एक नयी उमंग
कुछ पल ख़ुशी, कुछ पल ग़म, जाने कैसी थी ये ज़िंदगी की तरंग
एक-एक कदम उठाये तो, मिलो का सफ़र हम भी तय कर सकते है
ज़मीन से उड़ान भर कर देखे तो, आसमान पर हम भी कभी छा सकते है
आज भी गुज़र रहा है रहगुज़र के संग, ये ज़िंदगी का सफ़रनामा
इस सफ़र में हमसफ़र मिल जाये अगर, तो फिर और क्या है पाना
माना के मुश्किल है ये सफ़र, पर हमने भी कभी हिम्मत नहीं हारी है
तुम भी देख लो ए ज़िंदगी, क्यूँकि इस बार तो जीत की बारी सिर्फ़ हमारी है
पलकों पे आंसू थे मगर मन में कई नये अरमान सजाये थे
और घरवालों ने अपने पैरों पर खड़े होने का फ़रमान सुनाये थे
इस सफ़र में कुछ अच्छा कर गुज़रूँ, अब तो बस यही गुज़ारिश है
ये तो सफ़र है, और इस सफ़रनामे में थोड़ी सी धूप है तो थोड़ी बारिश भी है
चलते रहे अपने रास्ते पर अगर तो कोई किनारा ज़रूर दिखेगा
इस सफ़र में कभी ना कभी कोई तो सहारा ज़रूर मिलेगा
सफ़र आसान तो नहीं था मगर ये दास्तान है मेरे ज़फ़र की
दोस्तों ये थी एक छोटी सी दास्तान मेरे अपने सफ़र की