जिंदगी… एक किताब
पन्ने पन्ने पर लिखा है
अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब
पल प्रतिपल लिखती रहती है
जिंदगी हर मानव की किताब...।
बालपन की मस्त क्रीड़ायें
जवानी की उमंग और प्रीति
अधेड़ उम्र की जिम्मेदारी
अनुभव है बुढ़ापे की रीति
हर उम्र का अपना जीवन
अपने कर्तव्य से देता जवाब
पल प्रतिपल लिखती रहती है
जिंदगी हर मानव की किताब...।
रिश्ते नाते के अपने नियम
स्वार्थ परमार्थ की आंख मिचोली
अपने पराए की विचित्र कहानी
कभी दुश्मनी कभी हमजोली
हर व्यवहार अपने कर्मों से
स्वयं को सिद्ध करने को बेताब
पल प्रतिपल लिखती रहती है
जिंदगी हर मानव की किताब...।
हर ज्ञान की अपनी सीमा
दर्शन कला हो या विज्ञान
लेकिन है सभी ज्ञान से बढ़कर
कर्म सिद्धांत 'गीता' का ज्ञान
ईश्वर भी जिससे बंधे हुए हैं
वह कर्म का मंत्र है लाजवाब
पल प्रतिपल लिखती रहती है
जिंदगी हर मानव की किताब...।
अर्चना अनुप्रिया