आख़िर कब तक. . .
आख़िर कब तक हम एक बुराई के प्रतीक 'दशानन' को जलाकर औपचारिकता निभाते रहेंगे ?
हमारी परम्पराएं हमें सिर्फ़ अतीत को जीवित रखने का संदेश ही नहीं देती बल्कि आने वाले समय में उन ग़लतियों को दोहराने से बचने का आह्वान भी करती हैं जो हम अतीत में कर चुके हैं
हमें बाहर के रावण के साथ अपने भीतर के रावण को भी जलाना होगा। हमें समाज के उन दशाननों को भी नष्ट करना होगा जो अपने दस रूपों से समाज को बद से बदतर बनाते जा रहे हैं।
हमें 😈 क्रोध,😈अहंकार,😈मोह, 😈स्वार्थ,
😈मद/अतिविश्वासी, 😈काम वासना,😈अमानवता,😈लोभ/लालच,😈ईर्ष्या/जलन और 😈अन्याय/क्रूरता जैसी दस बुराईयों को नष्ट करने का प्रयास करना होगा।
अपने अंदर से ही नहीं समाज से भी. . . !
आप सभी को परिवार सहित 'दशहरा पर्व' की बहुत बहुत शुभ कामनाएं ।
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// वीर //