जीवन की सार्थकता
जबलपुर शहर में नर्मदा नदी के किनारे स्वामी प्रशांतानंद जी का आश्रम था जिसमें उनके दो शिष्य अभयानंद और अजेयानंद भी उनकी सेवा में रहते थे। उन दोनों के स्वभाव में काफी भिन्नता थी। स्वामी अजेयानंद अपने मन को भगवान के प्रति श्रद्धाभाव से समर्पित करने की प्रबल इच्छा रखते थे परंतु वह प्रभु का नाम दिन रात लेने के बाद भी अपने मंतव्य में एकाग्रता नही ला पाते थे, उनका मन प्रतिक्षण यहाँ से वहाँ भटकता था और वे अकर्मण्य होकर प्रभु का नाम लेने में ही जीवन की सार्थकता समझते थे। उनके मित्र स्वामी अभयानंद भगवान के प्रति श्रद्धाभाव तो रखते थे परंतु स्वामी अजेयानंद से विपरीत केवल प्रातः और सायंकाल ही प्रभु दर्शन हेतु मंदिर जाते थे और प्रभु से जनसेवा हेतु शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते थे। वह पूरा समय गरीबों, असहायों एवं बीमारीयों से ग्रस्त दीन हीन व्यक्तियों की सेवा में ही तन, मन और धन से लगे रहते थे। वह अपनी इसी सेवा को प्रभु के प्रति समर्पण और साधना समझते थे।
एक दिन स्वामी अजेयानंद ने लंबी तीर्थयात्रा के बाद आश्रम लौटे अपने गुरू से पूछा कि स्वामी अभयानंद तो दिनरात केवल सेवा में लगे रहते हैं उनके पास तो साधना के लिये समय ही नही है ऐसी स्थिति में क्या वे मोक्ष के अधिकारी होंगे ? गुरूजी ने उनसे कहा कि प्रभु कि सदैव अभिलाषा रहती है व्यक्ति सद्कार्यों में अपना जीवन व्यतीत करें ना कि अकर्मण्य होकर बैठा रहें। उन्होंने समझाते हुए कहा कि प्रभु का नाम लेना साधन है परंतु साध्य जरूरतमंदों की मदद करना है अपने मन को शुद्ध रखना और अनैतिक कार्यों से बचते हुए सत्य के मार्ग पर चलना यही जीवन का ध्येय है। यदि दिनभर प्रभु का नाम जपते रहो और मन में प्रभु के प्रति समर्पण न हो तो सिर्फ नाम जप लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती। स्वामी अभयानंद निश्चित ही प्रभु के मंतव्य को पूरा कर रहें हैं परंतु तुम अकर्मण्य होकर केवल नाम स्मरण कर रहे हो जिससे तुम पुण्य फल के तो अधिकारी हो परंतु मोक्ष के नही इसलिये तुम्हें भी नाम जप के साथ दीन, दुखियों और असहायों की सेवा करनी चाहिये तभी तुम प्रभु के मंतव्य को पूरा कर मोक्ष के अधिकारी बनोगे। यहीं प्रभु के प्रति वास्तविक पूजा एवं श्रद्धा है। प्रभु का नाम लेकर हमें प्रार्थना करनी चाहिये कि हमें सद्भाव और सद्कर्मों का जीवन जीने की शक्ति मिले ताकि हम अपना इहलोक और परलोक दोनों में सुखी रहकर अपने जीवन का उद्धार कर सकें।